Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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स्वामिन
अतएव तिर्यंचगति बालों के सामान्य बन्ध में उक्त तीन प्रकृतियों की गिनती नहीं की गई है और इसीलिए तिर्यंचगति में सामान्य से ११७ प्रकृतियों बन्ध माना जाता है।
तिर्यंचगति में पहले मिथ्यात्व से लेकर पांचवें देशविरत गुणस्थान तक पाँच गुणस्थान होते हैं । ये पांचों गुणस्थान पर्याप्ततिर्यथ को होते हैं और अपर्याप्ततिर्यंच को सिर्फ पहला मिथ्यात्व गुणस्थान ही होता है ।
पर्याप्ति तिर्यों के जो सामान्य से ११७कृति स्वामित्व बतलाया गया है, उसी प्रकार पहले मिथ्यात्व गुणस्थान में भी उनके ११७ प्रकृतियों का बन्ध समझना चाहिए। क्योंकि पहले बता चुके हैं कि तीर्थङ्कर नामकर्म का बन्ध सम्यक्त्व होने पर होता है और आहारकढिक का बन्ध चारित्र धारण करने वालों के होता है। किन्तु मिध्यात्व गुणस्थान में न तो सम्यक्त्व है और न चारित्र है । अतः मिथ्यात्व गुणस्थान में पर्याप्ततिर्यच ११७ प्रकृतियों का बन्ध करते हैं ।
सारांश यह है कि सातवें नरक के नारक दूसरे गुणस्थान में जो ९१ प्रकृतियों का बन्ध करते हैं, उनमें से अनन्तानुबंधीचतुष्क आदि तिर्यचकि पर्यन्त २४ प्रकृतियों को कम कर देने से शेष रही ६७ प्रकृतियाँ तथा इन ६७ प्रकृतियों में मनुष्यद्विक और उच्च गोत्र, इन तीन प्रकृतियों को मिलाने से तीसरे मिश्र और बोथे अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान- इन दो गुणस्थानों में ॐ प्रकृतियों का वन्ध करते हैं ।
तियंचगति में पर्याप्ततिर्यच बन्धयोग्य १२० प्रकृतियों में से तथायोग्य अध्यवसायों का अभाव होने से तीर्थकरनामकर्म और आहाRafae का बन्ध नहीं कर सकते हैं। अतः सामान्य से और पहले freutra गुणस्थान में ११७ प्रकृतियों का बन्ध करते हैं।
इस प्रकार नरकगति में सामान्य और गुणस्थानों की अपेक्षा और