Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सनस्वामित्व
कषाय-क्रोध, मान, माया में आदि के गौ गुणस्थान तथा लोभ में आदि के दस गुणस्थान होते हैं। (उदयापेक्षा
झान --मति, श्रुत, अवधिज्ञान में अविरत सम्यग्दृष्टि आदि नौ गुणस्थान पाये जाते हैं। मनःपर्ययज्ञान में प्रमत्तसयत आदि सात गुणस्थान हैं। केवलज्ञान में सयोगिकेवली और अयोगिकेवली यह अंतिम दो गुणस्थान पाये जाते हैं। मति-अज्ञान, थुत-अज्ञान और विभंग-ज्ञान इन-तीन अशानों में पहले दो या तीन गुणस्थान होते हैं। संयम-सामागि, दोपस्थानीय में
विचार गुणस्थान, परिहारविशुद्धि संग्रम में प्रमत्तभयत आदि दो गुणस्थान, सूक्ष्म-संपराय में अपने नाम वाला गुणस्थान अर्थात् दसवाँ गुणस्थान, यथाख्यातचारित्र में अंतिम चार गुणस्थान (ग्यारह में चौदही, देशविरत में अपने नाम वाला (पाँचवा देशवरत! गुणस्थान है। अविरति में आदि के चार गुणस्थान पाये जाते हैं ।
वर्शन- चक्षु, अचक्षुदर्शन में आदि के बारह गुणस्थान, अवधिवर्शन में चौथे से लेकर बारहवें तक नो गुणस्थान होते हैं। केवलदर्शन में अंतिम दो गुणस्थान पाये जाते हैं।
लेक्या-कृष्ण, नील, कापोत इन तीनों लेश्याओं में आदि के छह गुणस्थान, तेज और पद्म लेश्या में आदि के सात गुणस्थान, और शुक्ल लेश्या में पहले से लेकर लेरहवें तक तेरह गुणस्थान होते हैं। ___ मस्य-भश्य जीवों के चौदह गणस्थान होते हैं। अभव्य जीव को पहला मिथ्यात्व गुणस्थान है। __ सम्यक्स....-उपशम सम्यक्व में चौथे म लेकर ग्यारहन्छ तक आठ गुणस्थान, वेदक (क्षायोपमिक) सम्यक्त्व में चौथे से लेकर सातवें गुणस्थान तक चार गुणस्थान, क्षायिक सम्यक्त्व में चौथा आदि ग्यारह गुणस्थान होते हैं। मिथ्यात्व में पहला, सास्वादन में दूसरा और मिथ इष्टि में तीसरा गुणस्थान होता है।
सदिसंझी जीवों के एक से लेकर चौदह तक सभी मुणस्थान होते हैं तथा असंशी जीयों में आदि के दो मुणस्थान हैं।