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धन्य-चरित्र/43 उसके रूप में मोहित हृदयवाला राजा उसी का मन में स्मरण करता हुआ अपने महल में आया। फिर मंत्री द्वारा उसके पिता को बुलवाकर उसका कुल अपने बराबर करवाकर उस कन्या के साथ राजा ने शादी कर ली। उस कन्या को राजा ने पट्टरानी का पद दे दिया, क्योंकि प्रिय-स्त्रियों को कुछ भी अदेय नहीं होता। उधर पंकप्रिय भी राजा द्वारा दी गयी सम्पदा को निःशंक रूप से भोगने लगा, क्योंकि सम्पदा का फल भोग आदि ही है।
राजा ने अपने नगर में उद्घोषणा करवा दी कि जो पंकप्रिय कुम्भकार के आगे असम्बद्ध बोलेगा, वह मेरे द्वारा चौर-दण्ड से दण्डित किया जायेगा। अतः सभी जन अपने मन में विचार कर सरलता से बोलें। तब से पंकप्रिय सुखपूर्वक रहने लगा। इस प्रकार सुखपूर्वक काल व्यतीत करते हुए वर्षाकाल के अन्त में एक दिन राजा खक्खा पट्टरानी तथा पंकप्रिय के साथ नगर के बाहर उद्यानों में घूम रहा था। पग-पग पर विविध वृक्षों को देखते हुए एक जगह बदरी-वन को देखा। तब राजा ने रानी से पूछा-"हे देवी! ये किस चीज के वृक्ष हैं? इनका नाम बताओ।" उस समय वह रानी अत्यन्त सुखों में निमग्न होने से पूर्व अवस्था को भूल गयी थी। राज-लीला में अवगाढ़ उसने राजा को कहा-"मैं नहीं जानती कि यह कौन-सा वृक्ष है अथवा इसका क्या नाम है।"
रानी के द्वारा कथित इस प्रकार के वाक्य को सुनकर ईर्ष्या से क्षुब्ध होते हुए पंकप्रिय शत्रु की तरह दृढ़ मुट्टियों द्वारा अपने मस्तक को कूटने लगा।
___ तब राजा ने उसे इस स्थिति में देखकर परिजनों को कहा-"अरे! मेरी आज्ञा का विध्वंस करनेवाले, मृत्यु के इच्छुक किस व्यक्ति ने इसे ईर्ष्या-पोषक वचन सुनाये?"
राजा के वचनों को सुनकर परिजनों ने कहा-“हे स्वामी! आपकी आज्ञा को नष्ट करनेवाले वचन किसी ने नहीं कहे।" तब पंकप्रिय ने लोक-भाषा में एक चार चरणवाला दोहा कहा
"कोलि जि बोरां विणती, आज न जाणे खक्ख। पुणरवि अडवि करिसु, पिं न सह एह अणक्ख।।"
अर्थात् कल तक जो बोरों को चुनती थी, वह खक्खा आज उनका नाम तक नहीं जानती। अहो! इस अनाख्येय को सहन नहीं कर सकने के कारण मैं पुनः अटवी में घर बनाकर रहूँगा।
यह सुनकर नृप ने विचारा-"मेरे द्वारा दिये गये आधिपत्य के कारण मेरी प्रिया अपनी पूर्व स्थिति को भूल गयी है। अगर इस प्रकार की सौख्य लीला