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धन्य - चरित्र / 249 वह दुःख शत्रु को भी न होवे । धन-धान्य आदि सर्व सुखों से पूर्ण भी यह सेठ भाई के दुःख से दुःखत होता हुआ अकेला ही सामान्य लोगों की तरह प्रत्येक पाटवी में परिभ्रमण करता है। सेवक कहीं और खुद कहीं - इस प्रकार ग्रह से ग्रसित की तरह घूमता रहता है। भाग्य की गति का स्फोटन करने में कोई भी समर्थ नहीं है।"
इस प्रकार सर्वत्र ख्याति हो गयी। पहले तो जब निकलता था और श्रेष्ठी उसको खोजते हुए पीछे-पीछे दौड़ता था, तो सैकड़ों-हजारों मनुष्य उसे घर लाने के लिए पीछे हो जाया करते थे। फिर बहुत दिन बीत जाने के बाद उसके पीछे-पीछे कोई नहीं आता था। घर पर रहकर ही वे लोग श्रेष्ठी के दुःख का शोक मनाते थे। अगर कोई अनजान व्यक्ति पूछता था कि "यह क्या है ? " तो उसके इस प्रकार पूछने पर नगर के लोग उत्तर देते थे कि "भाई ! कर्मों की गति ही ऐसी है। फिर श्रेष्ठी के गुणों के वर्णनपूर्वक सम्पूर्ण घटना को बताते थे। इसमें क्या आश्चर्य? नित्य ही इस प्रकार की कर्म-गति को यह सेठ भोगता है । श्रेष्ठी और उसके रोगी भाई का नित्य ही इस प्रकार का प्रवाह प्रवाहित होने से कोई भी अब उन्हें देखने के लिए खड़ा नहीं होता था । इस प्रकार लोगों के परिचित हो जाने के बाद श्रेष्ठी ने घर में रही हुई दोनों पण्याँगनाओं ( वेश्याओं ) को इस प्रकार की शिक्षा दी - " कल राजा की घुड़सवारी निकलेगी । उससे पहले ही सोलह शृंगार आदि तथा वस्त्राभूषण परिधान आदि की रचना के द्वारा ताम्बूल से मुख को सुशोभित करके गवाक्ष में श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठ जाना। जब हाथी के ऊपर बैठकर राजा दृष्टिपथ पर आये, तब कटाक्ष-बाणों के द्वारा उसे अच्छी तरह बींधना । हाव-भाव आदि बिभ्रम के द्वारा उसे आकर्षित कर लेना । जैसे - कुसुमों का अलंकार अंग-प्रत्यंग में व्याप्त हो जाता है, वैसे ही करना। जिससे वह तुम दोनों का ही ध्यान करें, तुम दोनों को ही देखे । ज्यादा क्या कहूँ? अपनी कला के जादू द्वारा गमनागन के समय अपने चारित्र - विलास के द्वारा उसे वश में कर लेना।" उन दोनों को इस प्रकार की शिक्षा देकर रखा ।
फिर दूसरे दिन राजा की घुड़सवारी के अवसर पर वे दोनों वारांगनाएँ स्नान-मज्जन आदिपूर्वक सोलह श्रृंगार करके पँच -सौगन्धिक ताम्बूल से मुख को भूषित करके आगेवाले राजमार्ग के गवाक्ष में भव्य भद्रासन पर बैठ गयी। दो घड़ी बाद राजा उसी मार्ग से निकला। गंध - हस्ती के स्कन्ध पर आरूढ़ होकर जब उस गवाक्ष के समीप आया, तो वे दोनों राजा के दृष्टि पथ पर आयीं । उन दोनों ने भी हाव-भावपूर्वक राजा को देखा ।
तब पर-स्त्री में लम्पट राजा चमत्कृत होकर उन दोनों को रागपूर्वक