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धन्य-चरित्र/321 करने की क्या बात है? चलो दासी! हम तुम्हारी स्वामिनी के पास जरूर आयेंगे।"
इस प्रकार कहकर वे दासी के साथ भद्रा माता के महल में आये। महल के अन्दर प्रवेश करते ही इधर-उधर सोने-चाँदी रत्नमय घर की शोभा बढ़ानेवाले तोरण, माला आदि को देखकर विस्मित होते हुए विचार करने लगे कि क्या यह मनुष्यों का महल है या देव-भवन? घर के दरवाजे पर ही इस तरह की ऋद्धि का विस्तार है, तो घर की स्वामिनी रत्नकम्बलों को यथा-रुचि अवश्य ग्रहण करेंगी। इस प्रकार विचारते हुए वे दूसरी मंजिल पर पहुँच गये। वहाँ तो सूर्य की धूप के समान रत्नों के द्वारा उद्योतित घर को देखते हुए भद्रा माता के निकट पहुँचे । भद्रा ने भी आदर सहित शिष्टाचारपूर्वक उन्हें बिठाया और पूछा-"आप क्या माल लेकर आये
है
उन्होंने कहा-"रत्नकम्बल ।" भद्रा ने कहा-"वे कैसे है?"
तब उन्होंने गठड़ी खोलकर कम्बल निकालकर दिखाये। उन्हें देखकर भद्रा ने पूछा-"इनके क्या गुण हैं?"
व्यापारियों ने पूर्व के समान ही सम्पूर्ण स्वरूप बताया। यह सुनकर भद्रा ने कहा-"इनका मूल्य क्या है?"
उन्होंने कहा- “सवा-सवा लाख स्वर्ण मुद्रा प्रत्येक का मूल्य है।"
भद्रा ने कहा-“मेरी बत्तीस बहुओं को एक-एक देने के लिए मुझे बत्तीस रत्न कम्बलों की जरूरत है, पर आपके पास तो सोलह ही है। अब क्या किया जाये? इन्हें फाड़कर दो-दो खण्ड करके सभी बहुओं को एक-एक टुकड़ा दे दूंगी।"
भद्रा के वचनों को सुनकर आश्चर्यचकित होते हुए थोड़ा हँसते हुए वे एक-दूसरे के कान में कानाफूसी करने लगे-"क्या यह वाचालता में बोल रही है या पागल होकर प्रलाप कर रही है? जहाँ राजा जैसा व्यक्ति भी एक रत्न कम्बल को भी ग्रहण नहीं कर सका, वहीं यह कहती है कि बत्तीस रत्न कम्बल क्यों नहीं लाये? पुनः कहती है कि एक-एक कम्बल के दो-दो टुकड़े किये जाये, यह क्या बोल रही है? इसके वचनों पर कैसे विश्वास किया जाये?"
__ तब दूसरे ने कहा-"तुम क्यों चिंता करते हो? क्या इसके कहने मात्र से हमने कम्बल के टुकड़े कर डालें? धन कहाँ है? जब यह हमें धन दे देगी, तभी हम इसके कथनानुसार कम्बल के टुकड़े करेंगे।"
इस प्रकार परस्पर बातचीत करके भद्रा से कहा-“हे माता! हम परदेशी हैं, अतः अपने घर लौट जाने को उतावले हो रहे है। इसी कारण से हम उधार का व्यापार नहीं करते, नकद-व्यापार करते है। अतः आप हमें मोल करके नकद धन प्रदान करें, फिर हम आपकी इच्छानुसार इन कम्बलों के टुकड़े कर देंगे।"