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धन्य - चरित्र / 360
सुरभित करने के लिए, आनन्दित करने के लिए चंदन वृक्ष की तरह एक ही नंदन पर्याप्त है, पर कुल के मूल को उखाड़ने के लिए कोई भी बालक अज्ञानी की तरह काफी है । वही पुत्र सुन्दर है, जो केवल कुल को ही नहीं, पिता की कीर्त्ति व गुरुओं के धर्म को भी बढ़ाये ।
इस प्रकार पति को खेदखिन्न देखकर पत्नी ने कहा - " स्वामी! अब शोक करने से क्या फायदा? क्योंकि
का मुण्डिते मूर्ध्नि मुहूर्तपृच्छा? गते च जीवे किल का चिकित्सा ? पक्वे घटे का विघटा घटते? प्रतिक्रिया काऽऽयुषि बद्धपूर्वे ? । ।1 । ।
सिर के मुण्डित हो जाने पर मुहूर्त पूछने से क्या लाभ? जीव के मर जाने पर चिकित्सा का क्या? घड़े के पक जाने पर फिर उसके अवयव क्या अलग-अलग हो सकते हैं? पूर्व में आयुष्य बाँध लिया हो, तो फिर क्या प्रतिक्रिया करना? अतः हे प्राणेश्वर ! अगर अब भी आप सावधान हो जायें, तो सब अच्छा ही होगा ।" पति ने कहा- "धन के बिना सावधानी क्या कर लेगी? क्योंकि
धनैर्दुष्कुलीनाः कुलीना भवन्ति, धनैरापदं मानवा निस्तरन्ति । धनेभ्यः परो बान्धवो नास्ति लोके, धनान्यर्जयध्वं धनान्यर्जयध्वम् । । 1 ।
धन से दुष्कुलीन कुलीन हो जाते हैं, मनुष्य धन के द्वारा आपदाओं से भी पार पा लेता है। धन से बढ़कर लोक में कोई भी बान्धव नहीं है । अतः धन का अर्जन करो। धन का अर्जन करो। "
पत्नी ने कहा- "स्वामी! स्नान भोजन आदि कीजिए, नाद में उपाय कहूँगी।" उसने विचार किया- "यह मुझे किसी निधान आदि के बारे में कहेगी । " तब वह स्नानादि करके भोजनादि करके कुछ देर बैठा, क्षर भर विचार किया, फिर बोला - "प्रिय ! कहो ! क्या उपाय है?"
तब उसने अपने लाख मूल्य के आभरणों में से पचास हजार मूल्य के आभरण निकालकर दिये। उन्हें देखकर कुमार हर्षित होता हुआ विचार करने लगा - "कुलीन स्त्रियों के लक्षण विपत्ति के समय ही ज्ञात होते हैं, क्योंकिजानीयात् प्रेषणे भृत्यान्, बान्धवान् व्यसनागमे । आपत्कालेषु मित्राणि, भार्या च विभवक्षये | 12 ||
दासों को भेजने में, बान्धवों को दुःख के आने पर, मित्रों को आपदा में तथा पत्नी को वैभव का क्षय होने पर ही जानें।
अहो! इसका निश्छल स्नेह सम्बन्ध !"
अब उसने उस द्रव्य से व्यवसाय करना प्रारम्भ किया । पर करोड़पति का पुत्र होकर अल्प धन से व्यवसाय करने के कारण लोगों के वचन सुनने पड़ते थे कि