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धन्य-चरित्र/391 वैसी ही इसे घर में ही रहते हुए धनवृद्धि प्राप्त हुई है।"
उस धन से वह प्रचुर व्यापार करने लगा। वहाँ भी पुण्यबल से धीरे-धीरे लक्ष्मी की वृद्धि ही हुई। वह महेभ्य हो गया। सर्वत्र ख्याति को प्राप्त हुआ।
उसको कुछ समय बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम लक्ष्मीचन्द्र रखा गया। क्रम से बड़े होते हुए उसको पढ़ने के लिए भेजा गया। थोड़े ही समय में उसने सारी कलाएँ पढ़ ली। पिता की संगति से धर्म क्रिया में भी वह कुशल एवं रुचिवाला हुआ। क्रम से यौवन को प्राप्त हुआ। व्यापार-कार्य में निपुण होने से लोक में उसके वचन श्रद्धास्पद बन गये। तब श्रेष्ठी उसकी योग्य वय एवं निपुणता देखकर श्रेष्ठी पुत्री के साथ विवाह के लिए सामग्री इकट्ठी करने लगा। ज्ञातिजनों, स्वजनों व परिचितजनों के भोजन के लिए विविध प्रकार की बहुत अधिक भोजन सामग्री करवाकर पहले से घर के कोठे आदि भर लिये।
___एक दिन श्रेष्ठी जिनपूजा कर रहा था, तभी मध्याह्न के समय सेठ के घर पर कोई साधु का सिंघाड़ा एषणीय आहार की गवेषणा के लिए आया। देवघर में स्थित श्रेष्ठी ने जब "धर्म लाभ" शब्द सुना, तो कहा-"क्या घर में कोई भी दाता है।"
तब नीचे स्थित लक्ष्मीचन्द्र ने कहा-“पिताजी! मैं ही हूँ।" सेठ ने कहा-"यहाँ आओ।" लक्ष्मीचन्द्र पिता के पास गया।
पिता ने कहा-"बेटा! तुम पूछो। कौन आचार्य पधारे हैं? कितने शिष्यों के परिवार से पधारे हैं?"
तब लक्ष्मीचन्द्र ने दरवाजे पर आकर पिता का कहा हुआ वृत्तान्त पूछा।
साधुओं ने कहा-“देवानुप्रिय! आज श्री धर्मघोष सूरि 500 साधुओं से परिवृत्त यहाँ पधारे हुए हैं। हम उन्हीं के शिष्य है, गुरु आज्ञा से एषणीय आहार की गवेषणा के लिए आये हैं।"
तब लक्ष्मीचन्द ने यह सभी श्रेष्ठी को बताया। तब सेठ ने कहा-"बेटे! ये तपोधनी मुनि 500 की संख्या में है। इनमें कई वयोवृद्ध हैं, कई प्रतिमाधारी हैं, कई जरा से जर्जरित देहवाले हैं, कई विविध अभिग्रहवाले हैं, कई विविध आगमों के अभ्यास में तत्पर हैं, कई ग्लान होने पर भी शरीर की सेवा-शुश्रूषा नहीं कराते। इन्हें भक्ति से प्रतिलाभित करने पर महान पुण्य होगा। क्योंकि
पहसन्त-गिलाणेसुं, आगमगाहीसु तह य कयलोए।
उत्तरपारणगम्मि य, दिन्नं बहुफलं होई।।2।। पथ से थके हुए, ग्लान, आगम पाठी, लोच किये हुए और उत्तर पारणा करनेवाले को दान देना बहुत फलदायक होता है और महान पुण्य होता है।
इस कारण से हे वत्स! साधुओं को सोलह मोदक दो। बहुत सारे साधु हैं, अतः चार-पाँच साधुओं के योग्य आहार दे दो। अपने घर के योग्य दान देना