Book Title: Dhanyakumar Charitra
Author(s): Jayanandvijay, Premlata Surana,
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 401
________________ धन्य-चरित्र/393 इस प्रकार कहते हुए कुमार ने साधुओं को वन्दन किया। तब साधु धर्मलाभ देते हुए वापस लौट गये। कुमार भी सात-आठ पाँव उनके पीछे जाकर पुनः पुनः वन्दना करके दान की अनुमोदना करते हुए घर आकर गृह-कार्य में प्रवृत्त हो गया। कुमार ने उस भावोल्लास द्वारा अत्यन्त पुण्य का उपार्जन किया, क्योंकि दूषण रहित व भूषण-रहित दिया गया दान अनंतगुणा फलित होता है। दान के दूषण ये हैं अनादरो विलम्बश्च वैमुख्यं विप्रियं वचः। पश्चात्तापश्च पञ्चाऽमी सदानं दूषयन्त्यहो! |२|| अनादर, विलम्ब, विमुखता, कठोर वचन और पश्चात्ताप-ये पाँच दोष सत् दान को भी दूषित कर देते है। दान के भूषण इस प्रकार है __ आनन्दाश्रुणि रोमाञ्चो बहुमानं प्रियं वचः । किञ्चाऽनुमोदना काले दानभूषणपञ्चकम्।।2।। आनन्द के आँसू आना, रोमांच होना, बहुमान, प्रिय वचन और समय पर अनुमोदना-ये दान के पाँच भूषण है। पूजा पूर्ण होने पर श्रेष्ठी ने पूछा-"मेरे कहे हुए मोदक तुमने दिये?" कुमार ने उत्तर दिया-"हाँ। दे दिये।" तब श्रेष्ठी ने परिमित भाव रूप से उतनी ही मात्रा में पुण्य का उपार्जन किया। अध्यवसायों की गति विचित्र है। पुत्र ने तो अपरिमित भावों के उल्लासपूर्वक सुपात्र के बहुमान द्वारा अमित पुण्य का उपार्जन कर लिया। गम्भीरतापूर्वक किसी के भी आगे नहीं कहा। अवसर आने पर बार-बार अनुमोदना भी की। लग्न-मुहूर्त के दिन लक्ष्मीचन्द्र का विवाह हो गया। उधर कितने ही दिनों तक भव्यों को प्रतिबोध देकर गुरुदेव अन्यत्र विहार कर गये। वे दोनों पिता-पुत्र यावज्जीवन धर्म की परिपालना करते हुए पूर्ण आयु का भोग करके शुभ ध्यान से मरकर सौधर्म देवलोक में देव हुए। वहाँ से च्यवकर पिता का जीव यह वही धर्मदत्त हुआ है। पूर्वजन्म में संविभाग व्रत में बीच-बीच में अतिचार लगाने से बीच-बीच में दुःख प्राप्त हुआ। बाद में 16 मोदकों के दान का अनुमोदन करने से 16 करोड़ स्वर्ण का स्वामी हुआ, अधिक का नहीं। पुत्र का जीव च्यवकर तुम्हारे रूप में राजा हुआ। पूर्ण भक्तिपूर्वक दान देने से अधिक पुण्यबंध करने से अक्षय स्वर्ण पुरुष प्रकट हुआ। ।। इति धर्मदत्त व चन्द्रधवल के पूर्वभव का दृष्टान्त।। इस प्रकार पूर्वभव की बात सुनकर राजा विचार करने लगा-"शास्त्रों में जैसा कहा गया है, वैसा ही दिखायी देता है, क्योंकि धर्म एव सदा येषां, दर्शनं प्रतिभूरभूत् । क्वचित् त्यजति किं नाम, तेषां मन्दिरमिन्दिरा।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440