Book Title: Dhanyakumar Charitra
Author(s): Jayanandvijay, Premlata Surana,
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 424
________________ धन्य-चरित्र/416 से वापस लौटने लगे। अपने ठहरने के स्थान पर आते हुए मार्ग में एक ग्वालिन सम्मुख आ गयी। वह ईर्यासमिति से युक्त दोनों मुनियों को देखकर अत्यन्त प्रमुदित हुई। उसके हृदय का उल्लास समाता ही नहीं था। उसने भक्तिपूर्वक मुनि को प्रणाम करके प्रसन्न मन से अपने बर्तन में रहे हुए दही के प्रतिलाभ के लिए विनति की-“हे स्वामी! इस शुद्ध दही को ग्रहण करने के लिए पात्र बढ़ायें और मेरा उद्धार कीजिए।" __ इस प्रकार का उसका अत्यन्त आग्रह देखकर उन दोनों मुनियों ने परस्पर विचार किया-"श्रीवीर प्रभु ने कहा था कि माता के हाथ से पारणा होगा, पर अन्यत्र लेना नहीं होगा, ऐसा तो नहीं कहा। जिनेश्वरों की वाणी विचित्र आशयों से युक्त होती है। हम छद्मस्थ क्या जाने? श्री वीर प्रभु-चरण में पहुँचकर पुनः शंका का समाधान करेंगे, पर अभी तो यह अत्यन्त भक्ति व उल्लासपूर्वक देने के लिए उद्यत है? इसके भावों का खण्डन कैसे किया जाये? वहाँ जाकर भगवन की आज्ञा के अनुकूल कार्य करेंगे?" यह विचारकर पात्र फैलाकर दही ग्रहण किया। उसने भी हर्ष से दिया और पुनः वंदना करके चली गयी। फिर वे दोनों मुनि भी स्वस्थान आ गये। फिर श्री वीर प्रभु जिनेश्वर के पास जाकर गोचरी की आलोचना करके हृदय में उत्पन्न संशय रूपी काँटे से युक्त हृदयवाले शालिभद्र ने जिनेश्वर को नमन करके पूछा-"भगवन! पूर्व में गोचरी जाते समय स्वामी ने जो कहा-आज तुम्हारी माता पारणे में निमित्त बनेगी-उस कथन का रहस्य तो मुझ मन्दमति ने नहीं जाना। आहार तो माता के घर प्राप्त नहीं हुआ। पर पारणे का आहार ग्वालिन के हाथ से कैसे प्राप्त हुआ? इस प्रकार मेरी शंका-शंकु का आप निवारण कीजिए। __तब श्रीमद् तीन जगत के नाथ ने कहा-"हे शालिभद्र मुनि! जिसने तुम्हें दही से प्रतिलोभित किया है, वह तुम्हारे पूर्व-भव की माता है।" श्रीमुख से यह वृत्तान्त सुनकर चमत्कृत होते हुए शलिभद्र मुनि ने पूछा-"कैसे?" तब स्वामी ने पूर्वभव का सारा वृत्तान्त बताया-"यह तुम्हारे पूर्व भव की माता है, इसका तो वही जन्म है।" श्री जिनेश्वर देव द्वारा बताये गये पूर्व–भव के स्वरूप को सुनकर प्रक्षालित हुए मैलवाले शालि मुनि ने दुगुने संवेग को प्राप्त होते हुए प्रभु की आज्ञा लेकर धन्य के साथ पारणा किया। ___फिर भाव-विरक्त बुद्धि युक्त शालि मुनि भगवान श्री महावीर के मुख से कहे हुए वचनों को स्मरण करते हुए इस प्रकार विचार करने लगे-"अहो!

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