Book Title: Dhanyakumar Charitra
Author(s): Jayanandvijay, Premlata Surana,
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 440
________________ * अहिंसा से आज्ञा पालन सर्वश्रेष्ठ है। 6 आज्ञापालन में भी विनय-विवेक न हो तो वह आज्ञा पालन भी निरर्थक हो जाता है / विनय भी विनय योग्य आत्मा का ही। विनयवादी के 32 भेद मिथ्यात्त्व में गिने गये * विकास उपयोगी भी अनुपयोगी भी / / * सूजन द्वारा शरीर का विकास - फूलना अनर्थकर है। अनीति द्वारा धन का विकास अनर्थकर है / किसी को शीशे में उतारने की बुद्धि का विकास भी अनर्थकर है। * अयोग्य शिष्य-शिष्याओं की बहलता अहितकर ही है। अयोग्य संतानों की अधिकता कष्टकर ही है। सम्यग्दर्शन रहित ज्ञान की अधिकता अनिष्ट फलदाता बन सकती है। आचारहीनता की अधिकता मानव को स्वादु। बनाकर एकेन्द्रियादि में भेज देती हैं / - जयानन्द Created by : Kirit B. Vadecha 023737600/9820073336

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