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धन्य-चरित्र/398 तब राजा ने नगर-रक्षकों को बुलवाकर कहा-“हे आरक्षकों! क्या तुम नगर की रक्षा नहीं कर सकते?"
उन्होंने कहा-"देव! नगर बहुत बड़ा है। आरक्षक बहुत थोड़े हैं। वह चोर अल्पजनों के द्वारा पकड़ा जाना कठिन है। अत्यन्त दुर्बुद्धि का भण्डार है यह चोर! अनेक कष्ट उठाने पर भी वह हमारे हाथ नहीं आया।" तब राजा ने कहा-"आज में ही चोर को पकडूंगा।"
यह सुनकर नागरिक प्रसन्न होते हुए अपने-अपने घर आ गये। राजा ने सन्ध्या में वीरधवल को बुलवाकर कहा-"वत्स! चोर ने अनेकों को पीड़ित किया है। हमें यह सुनकर लज्जा आती है। अतः आज पूरी तैयारीपूर्वक नाटकीय ढंग से चौकड़ी-चौकड़ी बनाकर अप्रमत्त मौनपूर्वक छिपकर रहना चाहिए, जिससे यह धूर्त हमारे हाथ में आ जाये। तुम इस दिशा में जाओ, मैं पश्चिम दिशा में जाता हूँ।"
इस प्रकार विभाग करके स्थान-स्थान पर चौकड़ी छोड़ दी। सभी राजा द्वारा निर्देश किये गये स्थानों पर गुप्त रूप से छिपकर बैठ गये।
उस रात वह चोर भाग्यवशात् कुमार की चौकड़ी में पड़ गया। तब कुमार की आज्ञा से उन भृत्यों द्वारा ढ़ाल से ही आच्छादित कर दिया गया, जिससे अधिक लोग न जान सके। तब कमार ने विचार किया-"प्रातःकाल राजा इसको मार डालेगें। पंचेन्द्रिय के वध से निश्चित ही मुझे पाप लगेगा, तब मेरे द्वारा गृहीत नियम मलिन हो जायेगा। पाप से उत्पन्न यश तो दुर्गति का ही हेतु है। अतः अभी इसे जीवनदान देना ही श्रेष्ठ है।
इस प्रकार विचार करके उसे जीवित ही मुक्त कर दिया। तत्क्षण भागता हुआ वह चोर कहीं चला गया। कुमार ने रक्षा की बात छिपाने के लिए सेवकों के आगे कहा-"चोर को मुक्त करने की बात मत कहना।"
प्रभात में राजा ने सभी सेवकों को बुलाया, तब वे चोर नहीं पकड़ पाने से खिन्न होते हुए राजा के आगे नमन करके खड़े रह गये।
राजा ने कहा-"हे सैनिकों, क्या चोर पकड़ में नहीं आया?" उन सभी ने कहा-"नहीं।"
सभी के चले जाने के बाद कुमार के किसी सेवक ने राजा का प्रियपात्र बनने के लिए और राजा के दण्ड के भय से राजा के सामने चोर को मुक्त करने की घटना स्वयमेव ही कह दी।
यह सुनकर कुपित होते हुए राजा ने कुमार के वस्त्र-आभूषण आदि लेकर कुमार को देश-निकाला दे दिया। कुमार अपने पूर्वकृत कर्मों की निन्दा करते हुए मार्ग में चलने लगा। विचारने लगा कि मैंने पूर्व में दूषित-भाव से पंचेन्द्रय-जीवों को मारण, ताड़न आदि पाप किये हैं। उनका फल ऐसा ही होता है। क्या इतने मात्र से ही मैं छूट जाऊँगा? न जाने आगे क्या होगा? क्योंकि अत्यन्त उग्र पुण्य व पाप का