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धन्य - चरित्र / 396 यह कहकर मंत्रियों को भेजकर संयम ग्रहण करने की चिन्ता से युक्त होता हुआ शय्या पर सो गया। फिर पिछली रात्रि में एक स्वप्न देखा कि कोई दिव्य रूपवाली दिव्य आभरणों से भूषित स्त्री ने आकर राजा से कहा - "राजन! राज्य की चिन्ता मत कीजिए। आपका राज्य न्याय- कार्य में एकनिष्ठ वीरधवल को दे दिया है । अतः उत्साहपूर्वक सुख से संयम ग्रहण करे। यह वरमाला संयम रूपी लक्ष्मी की निशानी है, जो आपके गले में डाली जाती है ।"
यह कहकर देवी अदृश्य हो गयी। तब राजा जागृत होता हुआ विचार करने लगा - "यह क्या है? इसका क्या भावार्थ है? वीरधवल कौन है? उसका कभी नाम भी नहीं सुना।" इस प्रकार विचार करते हुए प्रभात हो गया ।
तब मन्त्रियों को बुलाकर स्वप्न की घटना कहते हुए पूछा - "वीरधवल कौन है ? पूर्व में कभी नहीं जाना, न ही सुना । मेरे राज्य के योग्य है - यह कौनसी बात हुई?"
मन्त्रियों ने कहा- "हमें भी ज्ञात नहीं। श्री गुरुदेव से ही पूछना चाहिए ।" तब राजा ने स्वल्प सभासदों के साथ गुरु के पास जाकर और नमन करके रात्रि में देखे हुए स्वप्न के स्वरूप को पूछा - "स्वामी! वीरधवल कौन है? पहले न तो कभी जाना, न सुना ।"
तब गुरु ने कहा- "राजन! तुम संयम के लिए तैयार हो जाओ। जब तुम दीक्षा लेने के लिए यहाँ आओगे, तब उसका पूर्व - दिशा से आगमन होगा । वह तुम्हारी दीक्षा का उत्सव करेगा।"
यह सुनकर निश्चिन्त होकर घर जाकर सेवकों आदि को यथा-योग्य धन देकर संयम रूपी लक्ष्मी को पुष्टि का आधार मानकर संयम रूपी लक्ष्मी के जिज्ञासु के रूप में जिन भवन, जिनबिम्ब आदि सातों क्षेत्रों में उल्लासपूर्वक लक्ष्मी का वपन करके राजा धन्य व कृत-कृत्य हो गया ।
तब धर्मदत्त भी धनवती के कुक्षि में उत्पन्न रत्नसिंह नामक पुत्र पर घर के भार को सम्भलाकर धनवती के साथ संयम ग्रहण करने के लिए तैयार हो गया । उसके बाद वह भी स्वजनों, परिवार आदि को यथोचित धनादि देकर सभी के साथ क्षमा-याचना करके उनका आशीष लेकर पत्नी के साथ निकल गया । फिर राजा और धर्मदत्त दोनों ही महोत्सवपूर्वक सम्पूर्ण ऋद्धि के साथ गुरु चरण में गये। तब लोग विचार करने लगे - "राजा तो दीक्षा ले रहा है। हमारे पालन के लिए कोई राजा भी नियुक्त नहीं किया। अब क्या होनेवाला है?"
राजा भी विचार कर रहा था कि गुरु महाराज द्वारा कहा गया राज्य योग्य व्यक्ति अभी तक नहीं आया । श्रीमद् गुरु के वचन अन्यथा भी नहीं हो सकते। तभी पूर्व दिशा से दिव्य वाद्ययंत्रों की ध्वनि सुनायी दी। तब राजा और सभी लोग विस्मित होकर देखने लगे कि 'यह क्या है?' 'यह क्या है?' इस प्रकार बोलने लगे, तभी पूर्व