Book Title: Dhanyakumar Charitra
Author(s): Jayanandvijay, Premlata Surana,
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 376
________________ धन्य-चरित्र/368 नहीं जाना। फिर उस निर्लज्जा, निःस्नेही स्वभाव वाली साधारण सी स्त्री के द्वारा अपमान करके निकाले गये तुम घर आये। उस कुलवती पत्नी ने तुम्हें पचास हजार दिये, उन्हें भी अपनी कुबुद्धि से तुमने नष्ट कर दिया। अब पुनः घर जाकर कैसे अपना मुख दिखाओगे? अगर निर्लज्ज होकर घर पर रहोगे, तो भी स्वजन, परजन आदि तुम जैसे निर्धन, भाग्यहीन व मूर्ख-शिरोमणि पर हँसेंगे, उनके वचनों को तुम कैसे सहन करोगे? क्योंकि कहा भी गया है वरं वनं व्याघ्र-गजेन्द्रसेवितं, द्रुमालयः पत्र-फला-ऽम्बुभोजनम् तृणानि शय्या वसनं च वल्कलं, न बन्धुमध्ये धनहीनजीवनम् ।।2।। बाघ व सिंह से युक्त वन में वृक्ष को घर बनाकर पत्ते, फल व पान का भोजन करना, तृण की शय्या पर सोना तथा वल्कल के वस्त्र पहनकर रहना श्रेष्ठ है, पर बान्धवों के बीच धनहीन-जीवन जीना ठीक नहीं है। अतः फिलहाल तो वन का आश्रय ही श्रेष्ठ है। यह निश्चय करके वापस वन की ओर मुड़ गया। वहाँ फल-फूल आदि के द्वारा प्राण-वृत्ति को धारण करने लगा। इस प्रकार वन में रहते हुए एक बार एक विद्यासिद्ध योगी ने उसे देखा। उसे सुलक्षणों से युक्त जानकर कहा-'भाई! तुम चिन्तित क्यों दिखायी दे रह हो?" उसने कहा-“निर्धन को निश्चिंतता कहाँ? क्योंकि निर्द्रव्यो ह्रियमेति ह्रीपरिगतः प्रभ्रंश्यते तेजसा, निस्तेजाः परिभूयते परिभवाद् निर्वेदमागच्छति। निर्विण्णः शुचमेति शोकसहितो बुद्धेः परिभ्रंश्यते, निर्बुद्धि : क्षयमेत्यहो! अधनता सर्वापदामास्पदम्।।1।। धनहीन होने से लज्जा चली जाती है, लज्जाहीन का तेज नष्ट हो जाता है, तेज रहित व्यक्ति हर जगह पराभूत होता है, परिभव से निर्वेदता आती है। निर्विग्नता से शोक आता है, शोक सहित रहने से बुद्धि का नाश होता है, निर्बुद्धिवाला पुरुष नाश को प्राप्त होता है। इस प्रकार धनहीनता सभी आपत्तियों का वास है। जीवन्तोऽपि मृताः पञ्च व्यासेन परिकीर्तिताः। दरिद्रो व्याधितो मूर्खः प्रवासी नित्यसेवकः ।। 1।। दरिद्र, व्याधि से पीड़ित, मूर्ख, प्रवासी, दास-ये पाँच व्यक्ति जीवित होने पर भी मृत के समान है-ऐसा व्यास ने कहा है।" यह सुनकर योगी ने कहा-"मैं 'दरिद्रता रूपी जड़ को उखाड़नेवाला' माना जाता हूँ। इसलिए मैं ऐसा सोचता हूँ मयणदेव ईश्वर दह्यो लंक दहि हणुएण। पांडुउवन अरजुन दहिउ पुण दालिदं न केण।। 1।। कामदेव का दहन समर्थ ही करता है, लंका का दहन हनुमान ने किया। पांडुकवन का दहन अर्जुन ने किया। पर दरिद्रता का दहन किसी ने नहीं किया।

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