Book Title: Dhanyakumar Charitra
Author(s): Jayanandvijay, Premlata Surana,
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 388
________________ धन्य-चरित्र/380 अपनी पत्नी को सुखासन पर बैठाकर स्वयं अश्व-रथयान आदि वाहनों पर इच्छानुसार आरूढ़ होते हुए अनेक सैकड़ों भटो से परिवृत होकर अपने नगर की ओर जाने के लिए रवाना हुआ। वह थोड़े ही दिनों में अपने नगर के नजदीक पहुँच गया। फिर अपने घर बधाई भेजी कि धर्मदत्त श्रेष्ठी बहुत सारा धन अर्जन करके समृद्धियुक्त होकर आ रहा है। यह सुनकर पूर्वपत्नी ने स्वजनों को बधाई में वस्त्र-धन-आभूषणादि दिये। तब स्वजन विविध सुखासन् यान-वाहन आदि पर आरूढ़ होकर, अनुपम वस्त्राभरणों से अलंकृत होकर विविध वाद्ययंत्रों को बजाते हुए ‘पहले मैं पहले मैं “ इस प्रकार दौड़ते हुए एक योजन की दूरी तक धर्मदत्त के सामने गये। धर्मदत्त भी स्वजनों से गरम-जोशी के साथ गाढ़-आलिंगनपूर्वक मिला। परस्पर कुशल-क्षेम पूछी। फिर कुलवृद्धों को व अति-परिचित जनों को अत्यन्त सम्मानपूर्वक अपने रथ पर बिठाकर, अन्यों को भी यथा योग्य वाहन आदि पर सवारी कराकर, अनेक आडम्बरों से युक्त, हजारों की संख्या में लोगों से घिरा हुआ, अनेक वाद्ययंत्रों की ध्वनि के साथ, सुहागिनें कुल-वधुओं के द्वारा मंगल गीत गाये जाते हुए, प्रबल उत्साहपूर्वक याचक-जनों को दान देते हुए, तिराहे, चौराहे व राजपथ पर पग-2 पर नगरवासी महाजनों के द्वारा जय-जयकार किये जाते हुए अपने घर आया । पूर्व-पत्नी के द्वारा अक्षत-पुष्प आदि के द्वारा बधाकर उसका घर–प्रवेश करवाया। जब आस्थान में आकर बैठा, तो स्वजनों तथा अन्य परिचितों-अपरिचितों ने आकर विविध वस्त्र-आभरण, स्वर्ण-चांदी, रूपये, सिक्कों आदि द्वारा उपहार भेंट किये। घर की मर्यादा के अनुकूल रखने योग्य उपहारों को उसने ग्रहण किया। फिर कुमार ने भी विविध देशों में उत्पन्न वस्त्रादि के द्वारा यथायोग्य सभी का सत्कार किया। फिर धनवती सुखासन से उतरकर बहुत प्रकार के वस्त्र-द्रव्यादि चरणों में चढ़ाकर धर्मदत्त की पूर्वपत्नी के पैरों पर गिर पड़ी। उसने भी आशीर्वाद देकर गाढ़ आलिंगन किया। परस्पर सुख-समाधि पूछी। सम्पूर्ण नगर के वासी व पूर्व के दास-दासी आदि को जैसे-2 खबर मिली, सभी मिलने के लिए आये। धर्मदत्त ने भी मधुर बात-चीत के द्वारा उन्हें सम्मानित किया। पूरे नगर में धर्मदत्त का यश फैल गया। देखो! श्रीपति श्रेष्ठी का पुत्र कैसा निकला? पिता के नाम को गौरवान्वित किया। पूर्व में विनाश को प्राप्त होने पर भी अपने भुजबल से बहुत सारा धन अर्जित करके आया है। कुल का नाम बढ़ाया है। जो सुपुत्र होता है, वह कुल को उज्ज्वल ही करता है, क्योंकि एकेनापि सुपुत्रेण, जायमानेन सत्कुलम्। शशिना चेव गगनं, सर्वदैवोज्ज्वलीकृतम्।।1।। जैसे-एक ही चन्द्र द्वारा समस्त गगन उज्ज्वल हो जाता है,, वैसे ही एक ही सुपुत्र के पैदा होने से सत्कुल सदैव जाज्ज्वल्यमान रहता है।

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