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धन्य-चरित्र/357 घर आने के लिए युक्तियों-प्रयुक्तियों के द्वारा प्रेरित कर रहे हो। अतः जाओ-जाओ। जब मुझे आना होगा, तब आ जाऊँगा। आप सभी ओर से अत्यधिक निपुण हो, जो मुझे शिक्षा देने आये हैं। अतः जाइए, आप अपना कार्य करें। हमारे खर्च के लिए धन शीघ्र ही भेजें।"
इस प्रकार कहकर उसे शीघ्र ही भेज दिया। वह भी निराश होकर श्रेष्ठी के भवन पर लौटा। वहाँ आकर उसने सेठ व सेठानी से कहा-"उसका मन तो चारों ओर से उसी में आसक्त है। अभी तो वह आने के लिए तैयार नहीं है।'
यह सुनकर श्रेष्ठी ने दुखित होते हुए सेठानी से कहा-"जो मैंने कहा था, वह आज सामने आ ही गया। कितना भी निपुण पुरुष क्यों न हो, जब वेश्या में आसक्त हो जाये, तो सभी गुणों को हार देता है और दुर्बुद्धि व दुष्कर्म को इकट्ठा करता है।"
सेठानी ने पुत्र-मोह से कहा-"क्या हुआ? नया-नया सीखा है, शीघ्र ही रंग लगा है, कुछ ही दिनों में आ जायेगा। मार्ग पर तो आ ही गया है। सब अच्छा ही होगा। द्रव्य–खर्च के डर से आप व्याकुल न बनें, क्योंकि इसके पुण्य से धन इकट्ठा हुआ है, तो यही विलास करे। इसमें क्या हानि है? हमारे पास तो अपरिमित धन है। अभी से ही हृदय को संकुचित करके क्यों बैठे हैं?
सेठानी के कथन को सुनकर सेठ मौन धारणकर घर के कार्यों में लग गया। वह प्रतिदिन भोगद्रव्य भेजने लगा, पर कुमार तो घर आने का नाम ही नहीं लेता। पुनः कुछ दिन बीत जाने के बाद फिर से कुछ बड़े लोगों को कुमार को बुलाने के लिए भेजा, पर पहले की तरह क्रोधपूर्वक कुछ भी उत्तर देकर उन्हें भेज दिया। इस प्रकार बहुत बार बुलाने पर भी जब वह नहीं आया, तो सेठ-सेठानी निराश हो गये। उसके वियोग के दुःख से दुखित होकर वे दिन व्यतीत करने लगे। पर पुत्र-मोह के कारण धन बराबर भेजते रहे।
एक बार श्रेष्ठी को देवता के वचन याद आ गये। तब उन्होंने सेठानी से कहा-"प्रिये! देव वचन अन्यथा नहीं होते। अब पुत्र के आने की कोई आशा मत संजोना, अब तो आत्म चिंतन करें, जिससे सद्गति हो।"
इस प्रकार विचार करके वे दोनों धर्म करने को समुद्यत हुए। दान, शील, तप, भावना रूप चतुःआराधना का यथाशक्ति अनुष्ठान करने लगे। सात क्षेत्रों में हर्षपूर्वक धन का व्यय किया। फिर घर का भार पुत्र पर आरोपित करने के लिए प्रधान-पुरुषों को बुलाने के लिए भेजा, फिर भी वह नहीं आया।
अतः धर्म की आराधना करके पुत्र-वियोग के शल्य को हृदय में पालते हुए ही वे दम्पत्ति मृत्यु को प्राप्त हुए। उनके पीछे का प्रेतकार्य करने के लिए समस्त नगर एकत्रित हुआ, पर धर्मदत्त नहीं आया। घर में तो धर्मदत्त की पत्नी अकेली ही थी। वह सुकुल की कन्या थी, अतः कितने ही दिनों तक उसने धन भेजा। रोकड़ा धन