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धन्य-चरित्र/356 हो गयी है। अतः उसे कुछ दिन वहीं रहने दें।"
यह सुनकर श्रेष्ठी ने उन्हें अत्यधिक धन देकर विदा किया। कुमार सुख में निमग्न वहीं रह गया। रात्रि में वेश्या व कुमार ने विविध भोगों को भोगते हुए विषय-जागरण के उत्सव को करते हुए पिछली रात्रि में निद्रा को ग्रहण किया। सवेरे की निद्रा अत्यधिक मीठी होती है। चार घड़ी दिन चढ़ने पर ही वे दोनों जागृत हुए। कुमार देह-चिंता आदि से निवृत्त होकर आलस्य भरी देह से झरोखे में खड़े होकर आवास गृह में रही हुई वाटिका में पुष्प आदि को देखने लगा, तभी वेश्या भव्य झारी में शुद्ध जल भरकर दातुनादि लाकर कुमार के समीप आकर कहने लगी-"स्वामी! आप दातुन कर लीजिए।" इस प्रकार कहकर मुस्कुराते हुए वह, वहीं बैठ गयी। तभी कुमार की माता ने कुमार की खोज-खबर लेने के लिए गृह-सेवक को भेजा। उसने आकर कुशल-क्षेम पूछी एवं कहा कि द्रव्य आदि की आवश्यकता हो, तो हम ले आते हैं।
कुमार ने कहा-"जब तक मैं यहा हूँ, तुम प्रतिदिन सौ दीनारें लेकर आते रहना।"
सेवक ने जाकर माता को पूर्ण जानकारी दी। माता ने भी हर्षित होकर दीनारें भेज दीं। तब तक जुआरी भी आ गये। तब कुमार वेश्या के साथ वीणा आदि से तथा जुआ आदि खेलने लगा। उन्हें देखकर भी राग-रंग की अधिकता से मर्यादा को छोड़कर खेलने लगा। यह देखकर वे कुछ समय वहाँ ठहरे, फिर अपने घर चले गये। इस प्रकार वे रोज आने जाने लगे। कुछ दिनों बाद वेश्या ने उन जुआरियों को हमेशा के लिए वहाँ से निष्काषित कर दिया। उसके माता-पिता प्रतिदिन उसे सौ दीनार भेजने लगे।
इस प्रकार कितने ही दिन बीत जाने के बाद एक बार श्रेष्ठी ने अपनी पत्नी से कहा-"अब कुमार को बुला लेते हैं, जिससे घर पर रहकर ही सुखों का उपभोग करे और उसकी पत्नी भी प्रसन्न हो जाये । हम भी उसे देख लेंगे। कई दिनों से उसे देखा नहीं है।" इस प्रकार विचार करके घर के व्यापार के सबसे बड़े अधिकारी को भेजा। उसने वहाँ जाकर अत्यन्त बहुमानपूर्वक आने के लिए कहा-"स्वामी! आपके दर्शनों को आतुर आपके पिता आपको देखने चाहते हैं। माता भी आपके दर्शनों के लिए उत्कण्ठित हैं। प्रतिक्षण भगवान की तरह आपके नाम का जाप करती है। आपके आने से घर की शोभा में वृद्धि होगी। मेरे जैसे सेवक भी नित्य ही आपका मार्ग देखते हैं कि कब हमारे स्वामी भद्रासन को अलंकृत करेंगे। इस प्रकार प्रतिदिन प्रतीक्षा करते हैं। छोटी सेठानी भी स्वामी का आगमन चाहती है। अतः आपका घर पधारना बहुत ही अच्छा रहेगा, फिर जैसे आपकी इच्छा।"
तब कुमार ने क्रोधपूर्वक वक्र-दृष्टि करके कहा-"ठीक है, ठीक है। अभी तुम जाओ। क्यों आये हो? यहाँ रहते हुए हमें दिन ही कितने हुए हैं, जो कि तुम मुझे