________________
धन्य-चरित्र/354 बुलाये स्वर्ग-गंगा मेरे घर में आयी, जो कि नगर के महा-इभ्य के कुलदीपक कुमारवर ने मेरे घर को अलंकृत किया।"
__ इत्यादि वचनामृत के द्वारा संतुष्ट करके "खमा-खमा" शब्द करते हुए कुमार को भवन के अन्दर ले गयी। उसके बाद पुनः मधुर वचनों से प्रसन्न करते हुए ऊपरी मंजिल पर चित्रशाला में देव-शय्या के समान पलंग पर आदरपूर्वक बैठाया। जहाँ-जहाँ भी नजर पड़ती थी, वहाँ-वहाँ काँच आदि की शोभा से साक्षात् देव-विमान जैसी भ्रांति होती थी। कामसेना ने सबसे पहले कस्तूरी, चंदन, अत्तर आदि महामूल्यवाले पदार्थों से कुमार के शरीर को सुवासित किया। गुलाब-जल आदि गंधोदकों से आच्छादन किया। फिर अनेक प्रकार के संतरे, आम, दाड़म, आंजीर आदि शीघ्र ही परिपक्व मधुर व स्वादिष्ट फल इसके आगे पेश किये। उसके बाद, दाखें, अखरोट, बादाम आदि विविध देश से आये हुए मेवे उसके सामने रखे। फिर जायफल, अंगुर, कस्तूरी, अभ्रक, केसर, सीताफल आदि से निर्मित कामोत्तेजक विशिष्ट मादक द्रव्य से युक्त काढ़ा कटोरा भरकर सामने उपस्थित किया। फिर फूल, पान आदि 500 गंधिक द्रव्यों से युक्त पान के बीड़े पेश किये। बीच-बीच में प्रीतिवर्धक तथा कामोद्दीपक मीठे-मीठे वचन बिखेरती हुई सोलह शृंगार के भार से लदी हुई हाव-भाव आदि दर्शाती हुई मुख के आगे खड़ी रही। कुमार भी उसके हाव-भाव, सेवा चातुर्य आदि में मगन होकर बैठा रहा। तब वह अत्यधिक मीठे, ललित, सुकुमार, कोयल से भी मधुर वचनों के द्वारा कुमार को प्रेरित करने लगी-“हे स्वामी! यह ग्रहण कीजिए। यह बहुत अच्छा है। यह शरीर में ताप को बढ़ानेवाला है। यह मंगलों में सर्वश्रेष्ठ होने से शकुनकारी है। इसे तो जरूर ही ग्रहण करना चाहिए।"
इस प्रकार मिष्ट-वचनों से संतुष्ट होते हुए कुमार ने यथारुचि आस्वादन किया। फिर यथास्थान बैठ जाने पर नृत्य शुरू हुआ। अनेक राग, तान, नये-नये कामोद्दीपक हाव-भाव के द्वारा कुमार को तन्मय बना दिया। फिर कुमार के प्रथम यौवन से उत्पन्न विकारों के द्वारा अत्यन्त मादक द्रव्यों से बनाये हुए, पकाये हुए पदार्थों के भक्षण से अन्तरतम को भेदनेवाले कटाक्ष-बाणों से कामोद्दीपन हुआ। पणांगना ने यह जानकर भौंहों के इशारे से सभी जुआरियों को उठा दिया। वे भी कुछ न कुछ बहाना बनाकर चित्रशाला से बाहर चले गये। फिर जन-शून्य चित्रशाला हो जाने से यथेच्छापूर्वक आलिंगन आदि स्पर्श-सुख देकर कुमार को विह्वल कर दिया। तब कुमार ने पहली बार सुरत-सुख का अनुभव किया। इस अनुभव से कुमार का चित्त उस पणांगना में ही रसिक हो गया। उसे क्षणमात्र के लिए भी वहाँ से हटने नहीं देता था। एक मात्र उसे ही देखता रहता था। वेश्या ने अवसर देखकर अनेक प्रकार की दिव्य रसोई तैयार करवायी। जुआरी आदि भी वापस आकर इकट्ठे हुए, पर कुमार को वे अन्तराय डालनेवाले लगने लगे। उन सभी ने जान लिया कि "कुमार का चित्त स्त्री के पाश में फंस गया। अब तो यह हमारे साथ भी