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धन्य-चरित्र/355 प्रसन्नतापूर्वक बात नहीं करता। हमने जिस आयोजन के लिए यह उद्यम किया था, वह सफल हो गया। कुमार प्रातःकाल तक यहीं रहेंगे। अतः अब हम तो सेठ के पास जाकर उन्हें बधाई देकर बहुत सारा धन ग्रहण करेंगे।"
इस प्रकार एकान्त में परस्पर मंत्रणा करने लगे, तभी पणांगना के सेवकों ने आकर कहा-“रसोई तैयार है।"
फिर कुमार को स्नान-मण्डप में ले जाकर, शतपाकादि तेलों से मालिश करवाकर, सुगंधित उष्ण जल से स्नान करवाकर, चंदनादि से विलेपन करके, भव्य वस्त्रों व अलंकारों से भूषित करके भोजन के लिए बैठाया गया। जुआरी भी कुछ दूरी पर बैठ गये। वेश्या भी कुमार के समीप ही बैठ गयी। कुमार ने अनेक संस्कारों द्वारा तैयार, नाना प्रकार के रसों व स्वाद से युक्त रसोई वेश्या के साथ आनंदपूर्वक ग्रहण की। उन जुआरियों ने भी भोजन किया। उसके बाद वे सभी पुनः चित्रशाला में जाकर बैठ गये। तब उस वेश्या ने विविध प्रकार के मादक द्रव्यों से युक्त पान के बीड़े सभी को यथायोग्य दिये। तब तक दिवस का अवसान होने को आया। उन जुआरियों ने कुमार के मन की परीक्षा लेने के लिए कहा-“स्वामी! दिन अस्त होने को है।"
उनका यह कथन कुमार के कानों में पिघले हुए सीसे की तरह प्रतीत हुआ। उसने सुनकर भी उपेक्षा भाव से कुछ भी उत्तर नहीं दिया। उन्होंने जान लिया कि हमारा कथन कुमार को प्रतिकूल लग रहा है। अतः इसको यहीं छोड़कर चला जाये। उन्होंने वेश्या से कहा-"कुमार का मन तो तुमने एक ही दिन में वश में कर लिया है। अतः इन्हें यहीं रखना, क्योंकि हम तो जा रहे है।"
इसके बाद उन्होंने पुनः कुमार को बताया कि घर जाने का समय हो गया है। तभी वह वेश्या आकर क्रोधपूर्वक बीच में बोली-“कुमार तो यहीं रहेंगे, क्यों आप सभी मुझे मारने पर तुले हुए है? अब तो कुमार के बिना मैं क्षणभर भी नहीं रह सकती। आप तो मुझे दुःख देने के लिए यहाँ आ गये है। मैं तो प्राण-रहते इन्हें कदापि नहीं छोडूं। ये मेरे प्राणाधार है। अतः आप सभी पधारें। मेरा जीवन इनसे ही है। कुमार कदाचित् आपके कहने से यहाँ से जाने का मन कर लें, पर मैं इन्हें कैसे जाने दूँ?"
तब उन्होंने कुमार से कहा-“हे कुमार! यह अत्यधिक आग्रह करती है। अतः आज की रात आप यहीं रुक जायें। इसे आपका वियोग रूपी दुःख देना उचित प्रतीत नहीं होता। हम प्रभात में आयेंगे।"
तब कुमार ने कहा-"ठीक है आप लोग पधारें। मैं यहीं रूकता हूँ।"
तब वे सभी जुआरी कुमार को प्रणाम करके सेठ के घर गये। पति-पत्नी को बधाई देते हुए कहा-"स्वामी! आपका कार्य हो गया। आपका पुत्र अपनी इच्छा से कामपताका वेश्या के घर पर रहा हुआ है। उसकी काम भोग की वासना तीव्रतर