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धन्य - चरित्र / 328
तो इस सेवक की मान - वृद्धि के लिए स्वयं ही श्रम करके यहाँ पधारकर अपने पवित्र चरणों के न्यासपूर्वक सेवक के घर को पावन करें। तभी हमारे सारे मनोरथ पूर्ण होंगे। वह सेवक सभी इभ्यों के बीच प्रशंसनीय होगा। स्वामी के चार घड़ी के श्रम - मात्र से सेवक का भव यावत् सुख व मान की वृद्धि होगी। मैंने जो कुछ भी कहा है, वह आपकी प्रसन्नता हो, तो ही करें, अन्यथा नहीं, क्योंकि राजा लोग तो महामंत्री के ही आधीन होते हैं। आप जैसे पर दुःख - नाशक, कृपालु, सज्जन व्यक्ति पर- इच्छित कार्य ही करते हैं । इस महानगर में सभी पुरुषों के मध्य अभी दो ही पुरुष उत्तम माने जाते हैं । एक तो मेरे जामाता और आपकी बहिन के पति धन्यकुमार तथा दूसरे आप श्रीमान, जो कि दूसरों के मनोरथ को पूर्ण करने में के कल्पवृक्ष समान हैं। अतः आप कृपा करके "यह करने योग्य है" - इस प्रकार दिल में सोच लेंगे, तो यह कार्य अवश्य ही हो जायेगा, अन्यथा नहीं। हमारे जैसे वणिकों के घर महाराज का आगमन कैसे सम्भव हो सकता है? इसलिए अब हमारे घर की लाज आपके हाथ में है। इसके उपरान्त आपको जो अच्छा लगे, आप करें । "
तब अभय ने भद्रा के वचनों को सुनकर कहा - " आपने जो कहा, वह सत्य है। पर आपके मनोरथ पूर्ण करने में मैं जरा भी विलम्ब करूँगा, ऐसा आप सोचे भी नहीं, क्योंकि आपके साथ मेरे अनेक प्रकार से सम्बन्ध है । सबसे पहला सम्बन्ध तो यह है कि आप और मैं- दोनों ही श्रीमद् - जिन - चरणों के उपासक हैं। दूसरी बात यह है कि शालिभद्र की बहिन व मेरी बहिन एक ही घर में और एक ही व्यक्ति को ब्याही गयी है । तीसरा सम्बन्ध यह है कि आपके पति गोभद्र श्रेष्ठी महाराज के परम प्रिय कृपापात्र थे ही, अतः आपके कार्य को मैं अपना ही कार्य मानता हूँ। इसमें कोई अन्तर नहीं मानता। पर अगर मैं अकेला ही वहाँ जाकर महाराज को विनति करूँगा, तो सभा में कई दुर्जन व्यक्ति हैं, जो मुझ पर झूठा आरोप लगायेंगे कि मंत्री किसी भी प्रकार से रिश्वत आदि लेकर भद्रा के घर जाने के लिए महाराज को प्रेरित कर रहे हैं। उनके घर का तो कोई भी मुख्य व्यक्ति महाराज का बुलाने नहीं आया। कोई वाचाल कहेंगे- "बस! यही थी महाराज की आज्ञा ! जिस आज्ञा को सुनकर भी स्वेच्छा से तो नहीं आया, प्रत्युत राजा को अपने घर बुलाता है, राजा अगर स्वयं वहाँ जाये, तो फिर उनका क्या महत्व?" पुनः कोई कहेगा - "यदि महाराज होकर भी एक वणिक के घर जायेंगे, तो हमारे घर क्यों नही आयेंगे? उनकी बात रखने के लिए महाराज प्रत्येक के घर जायेंगे, तो उनकी लघुता होगी।' ऐसे अनेक विकल्प सामने आने पर भी हो सकता है राजा की महती कृपा आप पर हो फिर भी क्या पता? राजाओं के चित्त क्षण-क्षण में स्थिर - अस्थिर होते रहते हैं । अतः कदाचित इन बातों से मन में खटास आ जाने से मेरी बात वे न भी मानें। अतः आप अगर अपने मनोरथ पूर्ण करना चाहती हैं, तो मेरे साथ सुख - आसन पर बैठक राजा के पास चलें । वहाँ 1 आकर मेरे सामने की गयी विनति को आप राजा के समक्ष भी करें। उस समय मैं