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धन्य - चरित्र /351
कुमार ने कहा - " किसी दिन वहाँ भी जायेंगे।”
इस प्रकार सूर्यास्त तक कुमार के समीप ठहरकर, संध्या समय कुमार की आज्ञा लेकर सेठानी के पास जाकर सारी घटना का निवेदन सेठानी को किया । उसने भी सारी बात जानकर अत्यन्त हर्षित होते हुए उन्हें बहुत-सा द्रव्य देकर कहा - " अपनी इच्छानुसार द्रव्य का खर्च करो। किसी भी प्रकार का संकोच मत रखना । मैं तुम्हारी प्रत्येक इच्छा पूर्ण करुँगी । पर मेरे पुत्र को भोग - रसिक बना देना ।”
उन्होंने कहा—“आपके पुण्य-बल से थोड़े ही समय में आपका इच्छित मनोरथ पूर्ण होगा। तब हमारा मुजरा जानना चाहिए ।"
यह कहकर वे लोग अपने-अपने घर लौट गये। कुमार भी सुख - शय्या पर सोया हुआ दिन में देखा हुआ स्मरण करके प्रसन्नचित्त होते हुए संगीत ग्रंथों में रहे हुए नये-नये भावों के उल्लेख की कल्पना अपने मन में क्षयोपशम की प्रबलता से करने लगे। इस प्रकार शेष रात्रि को बिताकर प्रभात होने पर प्रभातिक कृत्य करके जब अपने आस्थान–मण्डप में जाकर बैठे, तो वे सभी जुआरी भी इकट्ठे होकर आ गये । पुनः पुनः कुमार को प्रेरणा करके संगीतकार के घर ले जाकर तीन-चार घड़ी तक वहाँ रूककर फिर कुमार को प्रेरित करके वहाँ से उठाया एवं कहा - " स्वामी ! आज अमुक पर्व है। अमुक स्थल पर मेला लगा हुआ है, वहाँ महा-आश्चर्य है। चलिए, चलकर देखा जाये ।"
तब संगीतकार ने भी कुमार को प्रोत्साहित किया । अतः जुआरियों व संगीतकार को साथ लेकर नदी के तट पर लौकिक देवालय में अनेक लोगों के समूहों को देखते हुए, कहीं हास्य रस को उत्पन्न करनेवाली बातों के विनोद को सुनते हुए, कहीं विविध वेशभूषा से युक्त व्यक्तियों के नृत्य को देखते हुए, कहीं भाण्डों व भाण्डियों की चेष्टा को देखते हुए नदी के प्रवाह में नौका पर आरूढ़ होकर कुमार एक उच्च स्थान पर आरूढ़ हो गया। चारों ओर वे जुआरी भी विनयपूर्वक बैठ गये । संगीतकार ने कुमार के सामने बैठकर ताल - तन्त्री - मट्टंग - वीणा आदि के वादनपूर्वक संगीत शुरू कर दिया। कुमार चारों ओर तट पर रहे हुए लोगो को देखने लगा । नदी के प्रवाह में नौका इधर-उधर भ्रमण करने लगी। एक तरफ बसन्त ऋतु में हरे-भरे पल्लवित पुष्पित वृक्षों की शोभा को देखते हुए, एक तरफ रस-रंग को उत्पन्न करनेवाले कोयल के मधुर शब्दों का श्रवण करते हुए कुमार का हृदय प्रसन्न हो गया । इस प्रकार के अद्भुत रस का आस्वाद का अनुभव करते हुए कुमार के भोजन का समय आने के पूर्व ही जुआरियों ने कहा- "स्वामी! आज तो बहुत ही रसिक दिन है। अगर आपकी आज्ञा हो, तो भोजन-सामग्री यहीं तैयार करायी जाये।"
कुमार ने कहा- " अच्छा है। जल्दी तैयार करवायें। "
तब उन्होंने हर्षित होते हुए विविध प्रकार की रसोई रसोइयों द्वारा बनवायी ।