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धन्य-चरित्र/330 (शालिभद्र) को यथार्थ फल की प्राप्ति होगी। अगर वह यहाँ आया, तो उसे हजार कोस तक चलने जितना श्रम उठाना पड़ेगा। इसके बाद तो जैसी आपकी इच्छा! आपकी आज्ञा किसको मान्य नहीं होगी? आप अपनी इच्छा बतायें, हमारे द्वारा सिर के बल स्वीकार्य होगी।"
भद्रा के उन वचनों को सुनकर राजा ने अभय की ओर देखा। तब अभय ने कहा-"प्रजा पालन में तत्पर आप जैसे महापुरुष का इनके घर जाना युक्त ही होगा, कोई लोकापवाद नहीं। आपके पधारने पर इनका मनोरथ पूर्ण होने से इन्हें अनिर्वचनीय आनन्द होगा। लोक में प्रजावत्सलता से आपकी कीर्ति फैलेगी। फिर भी जैसे आपकी इच्छा।"
उसी समय धन्यकुमार ने भी अभय के कथन का समर्थन करते हुए कहा-"महाराज! मंत्रीराज सही कह रहे है। आपके वहाँ पधारने से वास्तव में प्रजा का वात्सल्य होगा, जिससे आपकी कीर्ति का प्रसार होगा।"
तब राजा ने भद्रा से कहा-हे भद्रे! आप सुखपूर्वक घर जायें। हम आपके घर जरूर आयेंगे।"
__राजा के इन वचनों को सुनकर हर्षपूर्वक स्वर्ण व रत्नों के द्वारा राजा के मस्तक को न्यौछावर करके पुनः सुखासन पर आरूढ़ होकर भद्रा घर पर आ गयी। अपने प्रधान-पुरुषों को बुलाकर आज्ञा दी कि हमारे घर से राजद्वार तक के सम्पूर्ण मार्ग को साफ करके सुगन्धित जल छिड़ककर अनेक प्रकार के सुन्दर व सुगन्धित पुष्प बिछाकर मार्ग को दर्शनीय बना दो। तिराहों व चौराहों को विशाल मण्डपध्वज-पताका-तोरण आदि से सजाकर अति-रमणीय बना दो। मार्ग में रही हुई दुकानों की श्रेणियों व बाजारों को विविध देशों में उत्पन्न स्वर्णमय-धागे से बने हुए वस्त्रों से आच्छादित करके आश्चर्यकारी बना दो। स्थान-स्थान पर कृष्णागरू, कस्तूरी, अम्बर आदि का धूप जलाकर समस्त मार्ग को सुवासित बना दो। बाजार में जगह-जगह पुष्पमालाएँ लटकाकर उनकी शोभा द्विगुणित करो। इस प्रकार भद्रा के आदेश को पाकर वे सभी वैसा ही करने में प्रवृत्त होने लगे। उसी समय पुत्र-मोह से मोहित होकर हमेशा पुत्र की ओर ही ध्यान रखनेवाले गोभद्र देव ने अपनी शक्ति से पृथ्वी तल पर रहे हुए राजगृह नगर को स्वर्ण की उपमा के अनुकूल बना दिया। जिसे पूरे दिन देखते हुए भी मनुष्यों की दृष्टि तृप्त ही नहीं होती थी।
तत्पश्चात् राजा श्रेणिक अभय आदि प्रधान पुरुषों, राजमान्य सामन्त आदि विशाल सेना से घिरे हुए गीत आदि गाये जाते हुए, वाद्ययंत्रों के वादन के साथ बंदीजनों द्वारा बिरुदावलि गाये जाते हुए इत्यादि महा-आडम्बर से युक्त राजद्वार से निकलकर बाहर की ओर दृष्टिपात करते हैं, तो नगर की शोभा देखकर चमत्कृत व संभ्रमित होते हुए पास में रहे हुए लोगों को पूछने लगे-"इस प्रकार का अत्यन्त रमणीय नगर किसने बनाया?"