________________
धन्य-चरित्र/316 चाटने लगा। तभी पड़ोस में गयी हुई उसकी माता वापस आयी। चाटते हुए बालक को देखकर विचारने लगी-"अहो! मेरे बच्चे ने तो थाली भरी हुई खीर भी खा ली। पर अभी तक इसे तृप्ति नहीं हुई। मेरा पुत्र रोज ही ऐसी क्षुधा को सहन करता है।"
इस प्रकार उसे क्षुधित जानकर पुनः उसे खीर परोसी। पर बालक तो खीर को खाने से ज्यादा खुशी दिये गये दान में मान रहा था। जैसे कि व्यापारी व्यापार में लगाये गये धन से भी ज्यादा रखे हुए धन की वृद्धि में ज्यादा हर्ष मानता है। उस बालक ने अति बहुमानपूर्वक दिये गये दान की अनुमोदना से सुख के हेतुभूत तीव्र रस से युक्त भोग-फल रूपी कर्म को बाँधा। फिर उस बालक को अति गरिष्ठ आहार के सेवन से अजीर्ण रोग समुत्पन्न हुआ। जिसके कारण उसे विसूचिका हुई, उसकी तीव्र पीड़ा में भी मुनि-दान का स्मरण करते हुए मरकर वह तुम्हारे धन्यकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ है। मुनि-दान के प्रभाव से ही यह महान यश और अद्भुत सम्पदा का क्रीड़ा-मंदिर बना है। जैसे सुक्षेत्र में बोया हुआ दान सौ-गुणा हो जाता है, वैसे ही पात्र में बोये वट-बीज के तुल्य बीज से वट के समान अनन्तगुणा फल प्राप्त होता है।
___ अब आपके और आपके इन तीन पुत्रों के द्वारा किये गये कर्म-परिणाम की विचित्रता तथा पूर्वभव को सुनें। धनसार आदि अनिर्वचनीय और असम्भावित कर्म-विपाक को सुनकर चमत्कृत चित्तवाले होते हुए प्रणाम–सहित "तहत्ति" कहकर अंजलि-युक्त होकर सुनने लगे। गुरु ने कहा
"एक सुग्राम नामक ग्राम में नजदीक-नजदीक घरवाले क्षय हुए धनवाले तीन कुलपुत्र मित्र रहते थे। वे तीनों ही धनाभाव में अन्य व्यापार न हो सकने के कारण वन में रही हुई लकड़ियों के द्वारा अपनी आजीविका का निर्वाह करते थे। एक बार वे तीनों ही लकड़ियाँ ग्रहण करने के लिए अपने-अपने घर से भोजन साथ में लेकर कम्बल आदि वस्त्र ओढ़कर जंगल में गये। तीसरे प्रहर के आरम्भ के समय ग्रीष्मऋतु होने के कारण तीव्र धूप के कारण भूमि तप्त हो जाने से मनुष्यों को व्याकुल बना देनेवाली रवि की किरणों के रहते हुए भी कोई महानुभाव, क्षमा के सार रूप ऐसे क्षमासागर मुनि संसार का वारण करनेवाले तप मासक्षमण के पारणे के लिए गाँव में जाने के लिए उस वन में आये। वे तीनों ही मित्र तप से शुष्क हुए अंगवाले, शेष रही हुई अस्थियाँ और चर्मवाली कायावाले, धर्म के मूर्तिमान स्वरूप उन मुनि को देखकर नट के वैराग्य की तरह सभी दान देने की इच्छावाले हुए। परस्पर विचारने लगे-"अहो! ये मुनि बहुत दूर से आये हुए प्रतीत होते हैं। तीव्र धूपवाली मध्याह्न वेला में तपी हुई बालुका के मध्य में