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धन्य-चरित्र/315 भरकर बालक के आगे रखी। बालक भी उस खीर को उष्ण जानकर उसे हाथ से ठंडी करने लगा। माता ने विचार-किया-"दूध आदि का भोज्य पदार्थ उज्ज्वल (सफेद) होता है। मेरी नजर न लग जाये, अतः स्नेह के कारण पड़ोसी के घर चली जाती हूँ।"
बालक भी जब उस धुआँ निकलती खीर को ठंडी करने लगा, तभी उसके घर की गली में मासक्षमण के पारणे के तपस्वी गुणों की खान रूपी मुनि ने भिक्षा के लिए प्रवेश किया। घर के पास से निकलते हुए मुनि को बालक ने देखा। मुनि का दर्शन होते ही हेतु के परिपाक से उस बालक को दान की रुचि उत्पन्न हुई। वह मन में विचार करने लगा-"अहो! आज समस्त पापों के संताप का शमन करने में समर्थ मुनि मेरे घर के आँगन के निकट पधारे हैं। अगर मेरे भाग्य का उदय होगा, तो मेरे आमंत्रण पर अवश्य ही आयेंगे। भिक्षा ग्रहण करने के लिए महा-इभ्यों के द्वारा सैकड़ों विनतियाँ करने पर भी ये साधु उनके घर पर नहीं जाते। जिनका भाग्योदय होता है, उन्हीं के घर पर पधारते हैं। मेरे निमंत्रण को स्वीकार करके अगर मेरे घर को पावन बनायें, तो श्रेष्ठ होगा। अगर मेरे भाग्य से ये कैसे भी करके पधार जायें, तो मैं धन्यों में भी धन्यतम होऊँगा।"
इस प्रकार बालक होते हुए भी बालक रूपी कल्पतरू की तरह उसके दान-भाव का उल्लास उत्पन्न हुआ। हर्षपूर्वक मुनि के सम्मुख जाकर अति भक्तिपूर्वक प्रणाम करके अंजलिपूर्वक विनति करते हुए कहने लगा-'हे स्वामी! मेरे घर में शुद्ध, निर्दोष आहार है। अतः कृपा करके अपने चरण-न्यासपूर्वक मेरे घर–आँगन को पवित्र करें।"
इस प्रकार की उसकी अतीव दान-भक्ति जानकर उसकी विनति को स्वीकार किया। फिर उस बालक ने अत्यधिक भक्तिपूर्वक मुनि को घर के आँगन में ले जाकर प्रसन्नतापूर्वक थाल उठाकर मुनि के पात्र में एक ही धार में समग्र खीर बहराकर सात-आठ कदम मुनि के पीछे-पीछे जाकर फिर से मुनि को नमन करके दूसरों से भी ज्यादा अपनी आत्मा को कृत्य-कृत्य माना। उसके बाद आनंद के भार से बोझिल हृदय में दान के रस से नष्ट हुई भूख-प्यासवाला वह बालक घर में आकर खाली पड़े उस थाल के पास बैठकर बार-बार विचारने लगा-“दान के योग्य ऐसी भव्य खीर अब कब मिले? मिल भी जाये, तो मुनि का आगमन कहाँ से हो? अगर मुनि का योग मिल भी जाये, तो इन महेभ्यों के घर को छोड़कर मेरे घर में कहाँ से आयेंगे? आज तो बिना बादलों के ही बरसात हो गयी।"
इस प्रकार विचार करते हुए थाली में रहे हुए खीर के लेप–मात्र को