________________
धन्य-चरित्र/291 सकल देवेन्द्रों व नरेन्द्रों के द्वारा पूजित चरणवाले, समस्त वांछित सुख को देनेवाले, तीन ही जगत में उत्तम श्री जिनेन्द्र को छोड़कर इसलोक से प्रतिबद्ध अति उपचारपूर्वक मेरा पूजन करते हो। मैं तो पूर्व जन्म के उपार्जित पुण्य के वशीभूत होकर ही स्थिर-भाव से रहने में शक्य हूँ। जब तक प्रबल पुण्योदय है, तब तक ही मैं स्थिर रहती हूँ। अपनी इच्छा से रहने में मैं समर्थ नहीं हूँ। अतः जिसकी सेवा से कार्य सिद्ध न हो, उसकी सेवा करना व्यर्थ है। पुण्य के आधीन लक्ष्मी होती है-यह तो जगत में प्रसिद्ध ही है। पुण्य तो शुद्ध देव, गुरु, धर्म, दान, शील, तप आदि के द्वारा होता है, मेरे जैसों की सेवा करने से नहीं। अतः तुम्हारी व्यर्थ की सेवा ही मेरे परिहास का कारण है।"
___श्रीदेव ने कहा-"भगवती! तेरी पूजा में परायण मेरा जो होना है, वह हो जाये, पर तुम्हारी पूजा प्राणान्त तक नहीं छोडूंगा।" इस प्रकार निश्चल चित्त के द्वारा लक्ष्मी-पूजा करते हुए दिन व्यतीत करने लगा।
__एक बार लक्ष्मी-पूजन के अवसर पर लक्ष्मी के श्याम मुख को देखकर श्रीदेव ने पूछा-"भगवती! किस कारण से तुम मुझे विवर्ण मुखवाली प्रतीत होती हो?"
लक्ष्मी ने कहा-"तुम्हें अभी जो पुत्र हुआ है, वह विलक्षण पुण्य रहित व पाप की बहुलतावाला है। अतः अब मैं तुम्हारे घर को छोड़ने की इच्छा रखती हूँ। तुम्हारी अतिभक्ति के द्वारा तुम पर स्नेह भाव होते हुए भी मुझे अवश्य ही जाना होगा। अतः तुम्हारे वियोग के दुःख से मैं ऐसी हो गयी हूँ। पुण्य के बिना मेरी स्थिरता नहीं हो सकती। शास्त्र में भी कहा है-जो कोई भी सत्लक्षणवाला पुत्र, दास, पशु अथवा पुत्रवधू के रूप में आता है, उसके आगमन-मात्र से बिना बुलाये हुए भी लक्ष्मी अनुज की तरह पीछे-पीछे चली आती है। थोड़े ही समय में घर को लक्ष्मी से परिपूर्ण कर देती है। अगर कोई बुरे लक्षणोंवाला पूर्वकृत पापों के समूहवाला पुत्र, पुत्री, सेवक अथवा तिर्यंच आता है, तो आगमन-मात्र से यत्नपूर्वक रक्षित लक्ष्मी भी नष्ट हो जाती है, क्योंकि पुण्य-पाप के उदय से ही अचिन्तित लक्ष्मी आती-जाती रहती है। कहा भी है
पुण्योदयाद् भवेल्लक्ष्मी लिकेरफलेऽम्बुवत्।
अज्ञाता हि पुनर्याति गजमुक्तकपित्थवत्।। पुण्य के उदय से ही लक्ष्मी नारियल के अन्दर पानी की तरह ही होती है। हाथी द्वारा खाये हुए कपित्थ की तरह वह अज्ञात रूप से चली जाती है।
बिना इच्छा के भी मुझे जाना ही होगा। अतः मेरा मुख विवर्ण हो गया है।"