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धन्य-चरित्र/294 उसने कहा-"चतुष्पथ में गये हैं।"
पुनः उसने पूछा-"भाग्यवती! क्या आपके घर में दुर्गतपताका नाम का कोई कर्मकर है?"
उसने कहा-"थोड़े दिन पहले था।" भोगदेव ने कहा-"अब कहाँ गया है।"
उसने कहा-"अभी तो उसे मरे नौ महिने हो चुके हैं। मरे हुए को यह नवमा मास चल रहा है। आप जैसे महा-इभ्य श्रेष्ठी का उसके साथ क्या प्रयोजन है?"
भोगदेव ने केवली द्वारा कहा हुआ वृत्तान्त कहा। तब तक संचयशील सार्थवाह भी आ गया। परस्पर शिष्टाचारपूर्वक जोत्कार किया और मिले। बाद में सुख-क्षेम वार्ता पूछी। भोगदेव ने मन में चिंतन किया कि केवली के वचन अन्यथा नहीं हो सकते। अतः यहाँ रहने पर ही संदेह का नाश होगा, क्योंकि अमूढ़लक्ष्यी केवली-वचन सत्य और गुणकारी होते हैं। अतः यहाँ निवास करना ही युक्त है।
इस प्रकार विचार करके संचयशील को कहा-"हे श्रेष्ठी! हमें एक सुन्दर घर भाड़े पर दे दो।" संचयशील ने भी अपने बगल में रहे हुए खुद के ही विशाल घर को दिखाया। भाड़ा पक्का करके भोगदेव वहाँ रहने लगा।
एक बार संचयशील की गर्भवती पत्नी धनसुन्दरी नव-मास आदि गर्भ की स्थिति पूर्ण होने पर प्रसूति को प्राप्त हुई और पुत्र का जन्म हुआ। घर के अन्दर रहे हुए सभी मनुष्यों को अपुत्रक को पुत्र-प्राप्ति के कारण उत्साह जागृत हुआ। श्रेष्ठी तो चतुष्पथ पर गया हुआ था। तब एक दासी ने महालाभ की आशा से दौड़ते हुए चतुष्पथ में जाकर बाजार में स्थित श्रेष्ठी को हर्षपूर्वक बधाई दी। कृपणों के गुरु उस श्रेष्ठी ने "अच्छा हुआ" यह कहकर उसे भेज दिया। कुछ महेभ्यों ने यह सब सुनकर चमत्कृत-चित्तवाले होते हुए मुख में अंगुली डालते हुए एक-दूसरे के कान के पास जाकर कहा-"अहो! इसकी कृपणता? वृद्धावस्था में भी कुल-संतति का रक्षक पुत्र महती आशा से पैदा हुआ है, पर कुछ भी बधाई नहीं दी। यह कैसा निर्लज्ज है? कैसा इसका वज्र से भी कठोर हृदय है?"
तब एक मुखर व्यक्ति ने कहा-"श्रेष्ठी! पुत्र की बधाई में क्या दिया?"
श्रेष्ठी ने कहा-"क्या दिया जाये? क्या हुआ? मनुष्य-स्त्री अगर मनुष्य को ही पैदा करे, तो इसमें क्या आश्चर्य है? क्या कोई लाभ हुआ? अपितु सूतिका