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धन्य - चरित्र / 256 शिक्षा देती रहती है। किन्हीं शुभ शकुनों से प्रेरित होकर ही आप इस समय हमारे यहाँ पधारी हैं, क्योंकि आज हमारे स्वामी के द्वारा उसे लोक - व्यवहार को निभाने के लिए किसी अति परिचित के घर पर भेजा गया है। इसी कारण आपकी और हमारी बात-चीत इतने विस्तार से और खुले रूप में हो पायी है । अगर वह घर पर होती, तो इतनी बातें कैसे हो पातीं? हम इस प्रकार की स्थितिवाले घर में रहती हैं।
इसी प्रकार एक दिन दैव-योग से मध्याह्न के समय एकान्त में इधरउधर घूमते हुए भवन के पिछले भाग में हम पहुँच गयीं। वह बुढ़िया तो घर के कामों में लगी हुई थी। उसी समय महाराज की सवारी निकली। तब घोड़ों आदि के शब्द सुनकर उन्हें देखने की इच्छा से गवाक्ष के द्वार खोलकर परदे को हटाकर हम देखने के लिए प्रवृत्त हुई । अगर वह होती, तो देखने नहीं देती । पर एकान्त होने से हम अपनी इच्छा से अच्छी तरह देखने में सफल हो पायीं । उस समय हाथी पर आरूढ़ महाराज गवाक्ष के समीप से निकले। तब हमारा और महाराज का दृष्टि-मिलन हुआ । तब किन्हीं पूर्वकृत कर्मों के उदय के कारण कोई अनिर्वचनीय जो राग उत्पन्न हुआ, उसे या तो हमारा मन जानता है या फिर ज्ञानी ही जानते हैं। राजा के द्वारा भी वैसी ही अनिमेष दृष्टि तब तक हमारे ऊपर रही, जब तक वे उस पथ से ओझल नहीं हुए। फिर मार्ग मुड़ जाने से वे दृष्टि- पथ से ओझल हो गये। तब उनके विरह से हमें जो दुःख उत्पन्न हुआ है, वह कहने में भी हम शक्य नहीं हैं। कौन जानता है कि किस जन्म में बाँधा हुआ दृढ़तर राग इस भव में उदित हुआ है? जो कि क्षण भर के लिए भी हृदय से दूर नहीं जाता।
पुनः दूसरे दिन भी दर्शन हुए, तब तो दूध में सीताफल के डालने के समान दर्शन से अति- सुख का अनुभव हुआ । पुनः पूर्ववत् वियोग हो जाने से हरे घाव में नमक डालने से होनेवाली पीड़ा से भी ज्यादा पीड़ा समुत्पन्न हुई । तब जाने-माने चोर के मरने से उसकी माता के दुःख के समान किसके आगे कहा जाये। इस प्रकार उसी रोज से ही सरसों जितना दुःख भी पर्वत के तुल्य प्रतीत होता है ।
उस दुःख को कम करने के लिए हम प्रतिदिन अपनी आत्मा को ही शिक्षा देते हैं कि 'हे जीव ! तुम व्यर्थ ही क्यों आशा करते हो? स्वर्ग में रहे हुए कल्पवृक्ष के फल की इच्छा की तरह सब निष्फल है। कहाँ तुम और कहाँ राजा ? किस उपाय से तुम्हारा मिलन होगा? तुम तो जाति, कुल, स्वामी, घर, लोक तथा वृद्धा आदि के भय के संकट में गिर गयी हो। वह राजा भी विषम लोक-राजनीति