________________
धन्य-चरित्र/274 किये जाते हुए, निर्धनता व दुर्दशा को प्राप्त अपने बान्धवों को भय के कारण शीघ्रता से धान्य की गोणियों को दूर हटाते हुए देखा। यह देखकर "ऐसा क्या हुआ?" इस प्रकार संभ्रान्त-चित्तवाला होकर विचार करने लगा-"अहो! मेरे इन भाइयों को राज्य, धन, सुवर्ण, रोकड़ आदि नव प्रकार के परिग्रह के समूह से भरे हुए घर को तथा पाँच-सौ ग्राम के आधिपत्य से युक्त अनेक सैकड़ों सामन्त, सैनिक, हाथी, घोड़े, सेना आदि से सेवा कराते हुए छोड़कर मैं यहाँ आया था। हा! इतने से दिनों के अन्दर इनकी ऐसी अवस्था हो गयी। यह कैसे संभव हुआ? अथवा तो कर्मों की गति बड़ी विचित्र है। दृढ़ रस से बाँधे हुए पूर्वकृत कर्मों के उदय को नष्ट करने में कोई भी समर्थ नहीं है- यह जिनागम का वाक्य अन्यथा नहीं होता है। अन्यों ने भी कहा है
कृतकर्मक्षयो नास्ति, कल्पकोटिशतैरपि। अवश्यमेव भोक्तव्यं, कृतं कर्म शुभाशुभम्।।1।। किये हुए कर्म का क्षय सैकड़ों-करोड़ों उपायों के द्वारा भी नहीं हो सकता, क्योंकि किये हुए शुभाशुभ कर्म अवश्य ही भोगने योग्य हैं।
___ चक्रवर्ती आदि ने भी अनेक प्रकार की दुर्दशा को भोगा है, तो इन लोगों का तो कहना ही क्या? इस प्रकार विचार करने के बाद पुनः सोचने लगा-"अहो! मैं इस प्रकार के सांसारिक सुख से सम्पन्न हूँ और इन तीनों अग्रजों की इस प्रकार की दुर्दशा को कैसे देख सकता हूँ?"
इस प्रकार अन्तर की भक्ति से कहने लगा-“हे सेवकों! इस परदेश से आये हुए व्यापारियों को मत मारो। इन्हें प्रीतिपूर्वक मेरे घर पर लेकर आओ।"
इस प्रकार आदेश देकर सवारी के साथ अपने घर की ओर चला। पीछे से सेवकों ने उनको कहा-“हे परदेशियों! हमारे स्वामी के आवास में शीघ्र ही चलो। स्वामी ने आज्ञा दी है कि इन्हें घर पर लेकर आना।" __वे तो यह सुनकर डरते हुए बोले-“घर ले-जाकर क्या करेंगे?"
सेवकों ने कहा-“अरे! डरो मत। हमारे स्वामी तो घर में आये हुए किसी को भी दुःख नहीं देते, बल्कि उनके दुःख को दूर करते हैं।"
इस प्रकार आश्वासन दिये जाने पर भी वे कुछ-कुछ डरते हुए धन्य के घर पर गये। सेवकों के द्वारा उनको सभा में ले जाकर "स्वामी के द्वारा बुलवाये गये ये आकर प्रणाम करते हैं" इस प्रकार निवेदन किया।
___ तब धन्य ने कहा- आप कहाँ रहते हैं? उन्होंने कहा-“हे स्वामी! हम मालव-मण्डल में रहते हैं। आजीविका के लाभ के लिए गेहूँ की गोणियाँ भरकर बैलों को लेकर यहाँ आये हैं। पर यहाँ धान्य के योग्य लाभ नहीं हुआ। प्रत्युत