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धन्य-चरित्र/263 देने में समर्थ नहीं हुआ। तब उन सेवकों के द्वारा खाट में बाँधकर कर्मकरों के द्वारा उठवाते हुए घर से बाहर निकाला। जब तक उसे इस हालत में गली के नुक्कड़ पर ले जाने लगे, तब तक अभय श्रेष्ठी महा-इभ्यों के साथ घिरा हुआ, हजारों नागरिकों से परिवेष्टित, आगे-आगे पंचम स्वर में वादिंत्रों के बजाये जाते हुए, बंदीजनों के द्वारा विरुदावलि गाये जाते हुए, गायक-जनों के द्वारा उच्च स्वर में गाये जाते हुए- इतने लोगों के साथ वहाँ आया। गली के नुक्कड़ पर राजा श्रेष्ठी को देखकर विचार करने लगा - "यह क्या है? यह कौन-सा अवसर है'?
इस प्रकार विचार करते ही अभय कुमार की प्रतिज्ञा स्मृति-पथ पर आ गयी। "क्या यह सब कुछ अभय का तो विलास नहीं है?" इस प्रकार पुनः पुनः विचार करते हुए श्रेष्ठी को अच्छी तरह से देखकर मन में निश्चित कर लिया है "यह तो अभय द्वारा की गयी प्रतिज्ञा का पालन करने की क्रिया है। अहा! इसका बुद्धि-कौशल्य! कितनी दम्भ-रचना करके मुझे बाँधकर ले जाता है। अतः अब लज्जा करने से कार्य नष्ट होगा। इन नगर के लोगों को तथा सेवकों को बताता हूँ, जिससे ये लोग मुझे छुड़वायेंगे। उसके बाद जो होना है, वह हो जाये। इस दुर्बद्धि के द्वारा मैं चिल्लाये बिना नहीं छूट पाऊँगा।"
इस प्रकार विचार करके जोर से पुकारने लगा, तभी श्रेष्ठी आडम्बरपूर्वक चलने लगा। राजा बोलने लगा- "हे अमुक ग्रामाधिकारी! हे नगरजनों! मुझे छुड़वाओ। यह अभय मुझे पकड़कर ले जा रहा है। क्या देखते हो? मुझे छुड़वाओ। हे सामन्तों! क्या मुझे नहीं पहचानते हो? यह मुझे कपट से ग्रहण करके ले जा रहा है। मुझे छुड़वाओ।"
इस प्रकार बार-बार पूत्कार करता है, पर इस तरह की बातें नित्य ही प्रवाह की तरह कान में पड़ने से कोई भी इस बात को गम्भीरता से नहीं लेता। कितने ही लोग तो वादिंत्र आदि के वादन, बन्दी-जनों द्वारा विरुदावलि सुनने में तथा संगीत के श्रवण में व्यग्र होने से उसकी बातों को सुनते ही नहीं थे। कुछ लोग अत्यधिक कोलाहल होने से दिशाओं के बहरे हो जाने से कुछ भी सुन ही नहीं पा रहे थे। श्रेष्ठी ने तो सब के आगे कहा- "अहो! जल्दी से नगर के बाहर जाना चाहिए। आगे कुयोग का समय लग जायेगा।" - इस प्रकार कहकर शीघ्र ही नगर के बाहर निकल गया। खाट पर स्थित प्रद्योत ने अत्यधिक पूत्कार किया, पर नित्य की ही क्रिया को मानते हुए लोगों में से किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। इस प्रकार नगर से कुछ दूर जाकर स्वयं लोगों को वापस भेजने का आदेश दिया- "तुम लोग इस खाट पर स्थित