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धन्य-चरित्र/255 अगल-बगल सभी जगह आप दोनों को देखते है, अन्य कुछ भी नहीं। इस प्रकार के दुःख से पीड़ित उनके कुम्हलाये हुए मुख को देखकर मैंने अति-आग्रह से कारण पूछा, क्योंकि मैं उनके हृदय के रहस्य को जाननेवाली परिचारिका हूँ। तब उन्होंने मेरे आगे दिल में रहा हुआ सारा दुःख निवेदन किया। यह सुनकर मैं भी उनके दुःख में सहभागिनि बन गयी हूँ - इस प्रकार की स्व-अवस्था को अनुभव किया। तो फिर क्या आपके मन में कुछ भी नहीं? अहो! उसके प्रेम की आर्द्रता! अहो! आप दोनों के हृदय की कठोरता! चौदह मुकुट-बद्ध राजाओं का अधिराज होते हुए भी इस प्रकार राग-आसक्त होकर आप दोनों की स्पृहा करता है। अतः उसके दुःख को न सह सकने के कारण मैंने बुद्धि बल से आपके दर्शन के लिए इन कारणों को इकट्ठा करके महा-प्रयासपूर्वक यह कार्य किया है। अतः आप दोनों हृदय को आर्द्र करके मेरे कथन को हृदय में धारण करो। जो जिसका स्मरण करता है, वह भी उसे अवश्य ही स्मरण करता है। इस प्रकार सज्जन प्रवृत्तिवाला घोड़ा दौड़ता है, पर दुर्जन अश्व का घुड़सवार दुर्जन अश्व की प्रवृत्ति को नहीं जानता है। अतः कृपा करके उसके मनोरथ को पूर्ण करें। उसके तो मन-वचन-काय-धन-जीवन आदि से भी अधिक आप दोनों ही हैं। जिस प्रकार के ध्यान की एकाग्रता उसकी आप दोनों पर है, उतनी एकाग्रता यदि अध्यात्म की कामना के द्वारा ईश्वर पर होती, तो मुक्ति भी दुर्लभ न होती। अतः ज्यादा क्या कहूँ? मेरे आगमन को सफल बनाने में आप दोनों समर्थ हैं।''
इस प्रकार दूती के कहे हुए वचनों को सुनकर उन दोनों ने दीर्घ निःश्वास लेते हुए कहा-"बहन! क्या किया जाये? हम दोनों पर तो साँप के द्वारा निगली हुई छछुन्दरी की तरह आफत आ पड़ी है। हम दोनों श्रेष्ठ इभ्य के घर में पैदा हुई और महा-इभ्य के घर में परणायी गयी। पूर्व में किसी ने भी इनके कुल में ऐसा कार्य स्वप्न में भी नहीं किया। हम दोनों ने भी आज तक प्राणनाथ के सिवाय किसी दूसरे पुरुष को नहीं देखा। किसी के साथ बात-चीत तक नहीं की। हम दोनों के पति तो धर्म व नीति-मार्ग के अलावा कुछ भी नहीं जानते। हमारे घर में दास-दासी आदि कोई भी धर्म-नीति के विरुद्ध बोलने में भी समर्थ नहीं है, करना तो दूर की बात है। आज तक घर के दरवाजे को छोड़कर बाहर पाँव तक नहीं रखा है। रथ से उतरकर सीधे घर में प्रविष्ट हुई हैं। जब अन्न-पानी का सम्बन्ध पूर्ण होने पर हमारे स्वामी घर जाने के लिए उद्यत होंगे, तो हम भी यहाँ से चली जायेगी।
___ और भी, हमारे घर में एक जरा से जर्जर कुलवृद्धा बुढ़िया है। वह तो क्षण-मात्र भी हमारा साथ नहीं छोड़ती है। प्रतिक्षण धर्म का अनुसरण करने की