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धन्य-चरित्र/258 इत्यादि अनेक बातें कहीं। अतः आप दोनों को जो उचित लगे, वही सत्य है। आप दोनों के आगे मैं क्या?"
इस प्रकार दूती के वचनों को सुनकर वे दोनों भी बोली-“हे सखी! यह अत्यन्त दुष्कर कार्य है। हम दोनों तो घर के बाहर पग रखने में भी समर्थ नहीं हैं। पिंजरे में रहे हुए तोते की तरह हम रहती हैं। सभी मर्यादा पालनी पड़ती है। अतः कोई भी उपाय दृष्टिगोचर नहीं होता, जिससे मन-चिन्तित सफल होवे। पर एक उपाय अगर भाग्योदय से सफल होवे, तो उनका योग मिल सकता है। इस नगर से पन्द्रह योजन दूर अमुक देव का तीर्थ है। वहाँ हमारे स्वामी ने किसी कार्य की सिद्धि के लिए पहले बाधा ली थी, वह कार्य सफल हो गया है। अत: 15-20 दिनों के बाद स्वामी वृद्धों के साथ वहाँ जाने की इच्छा रखते हैं। वे अगर वहाँ जाते हैं, तो अवसर है। तो भी हम दोनों तो महल में नहीं आ सकतीं, क्योकि पुराने विश्वसनीय सेवक तो किसी के भी घर में प्रवेश नहीं करने देंगे। हम तो कभी भी घर से बाहर कदम ही नहीं रखतीं। पर इस महा-मन्दिर में एक गुप्त ढका हुआ द्वार है। उस द्वार के ताले की चाबी हमारे पास है। यदि राजा सामान्य वणिक के वेश में अकेले ही आए, तो चिन्तित सफल हो सकता है, अन्यथा नहीं। आज के बाद आप भी हमारे पास मत आना, क्योंकि हमारे स्वामी और वृद्धा को महा-शंका होगी। पर इन घर के दास-दासियों के मध्य हमारे हृदय का हरण करनेवाली प्रियंवदा नामक एक प्रिय सखी है। वह गम्भीरता के साथ गुप्त बात को अत्यन्त छिपाकर रखती है। प्राणान्त कष्ट आ जाने पर भी किसी से नहीं कहती। अतः यथावसर हम उसे आपके पास भेज देंगी। वह सब कुछ विशद रीति से आपको समझा देगी और आप राजा से निवेदन कर देना। यथायोग्य निपुणता के द्वारा राजा यहाँ एकाकी रूप में गुप्तद्वार से होकर आयेंगे, तो राजा का और हम दोनों का इच्छित पूर्ण होगा, तो हम भी यथायोग्य सेवा करेंगी। पर यह बात राजा के अलावा अन्य किसी से भी न कहना। आप तो सर्व-रीति से कुशल हैं। अतः इससे ज्यादा कहना अनुचित ही है। पर हमारी परतन्त्रता अत्यधिक है, उसी भय से पुनः-पुनः कह रही हैं। ज्यादा क्या कहें? हमारी लाज आपके हाथ में है। अतः कोई भी न जान पाये, उसी तरह से सब कुछ करना।"
इस प्रकार कहकर श्रेष्ठी की अनुज्ञापूर्वक उसके साथ अधिकतर वस्त्रधनादि दिये। बाहर रहे हुए अन्य दास-दासियों को भी यथायोग्य चिन्तित से भी अधिक देकर भेजा। वे सभी प्रसन्न होकर गये।
दूती भी हर्षित होती हुई मार्ग में विचारने लगी-"मेरे भाग्योदय से ही