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धन्य-चरित्र/48 कुलटा स्त्री पुत्र-लालन में तत्पर अपने पति पर हँसती है। कैसे? यह मूढ़ पति मन में हर्षित होता है, कि मैं अपने पुत्र को खिला रहा हूँ। पर नहीं जानता कि यह पुत्र किसके वीर्य से उत्पन्न है? स्वयं तो नंपुसक के तुल्य है, पर अपने वीर्य से उत्पन्न पुत्र के गर्व की तरह गरजता है। यह हँसने का अभिप्राय है।
पापानुबंधी पुण्य से युक्त पुरुष स्व-कृत अन्तराय रूपी कुकर्मों द्वारा प्राप्त लक्ष्मी को भी भोगने में समर्थ नहीं होता। क्या द्राक्षा-पाक के अशन-काल में कौए की चोंच पक नहीं जाती? अर्थात् पकती ही है। इस प्रकार वह कृपण-शिरोमणि वृद्धावस्था की अन्तिम अवस्था को प्राप्त करके भी अहो! मोह-ज्वर रूपी रस्सी का आलम्बन लेकर धन-व्यय के भय से औषध के द्वेष रूपी कीचड़ में फंसकर क्या मुक्त हो सकता था? ज्वर-बाधा से युक्त होने पर भी द्रव्य-व्यय के भय से औषधि नहीं लेता था।
रोग से व्याप्त हो जाने पर मृत्यु के समय परलोक में सुख के हेतु के लिए पुत्रों ने पिता से पूछा-“हे तात! धन कहाँ है? जिसे कि धर्म-स्थान में बोकर आपका भवान्तर सहायी बनाया जाये।"
तब वह कृपण मरण के समय भी पुत्रों से बोला-'हे पुत्रों! मैंने पूर्व में ही करोड़ों का द्रव्य धर्म-रीति द्वारा व्यय कर दिया है, अतः मैं पूर्वकृत सुकृत्यों से सुगंधित हूँ। अब तो मैं एक ही पाथेय की याचना करता हूँ। वह मुझे दे देना।"
पुत्रों ने कहा-"जो आपकी इच्छा हो, वह कह दीजिए।"
उसने कहा-'हे पुत्रों! मेरी सर्वाधिक प्रिय इस अखण्डित खाट के साथ ही मेरा अग्नि संस्कार कर देना। यही मेरा प्रिय पाथेय होगा। अन्य पाथेय की बात छोड़ो।' इस प्रकार बोलते-बोलते शीघ्र ही बेहोश होकर उस प्रिय खाट के साथ गाढ़ आलिंगन करके गिर गया।
__जिस प्रकार से इंसान अपने कर्मों के उदय से जनित प्रकृति को नहीं छोड़ता है, उसी प्रकार वह भी अपने पुत्रों द्वारा पृथ्वी पर उतारे जाने के आशय से उठाये जाने पर भी मूर्च्छित-मरण दशा को प्राप्त होने पर भी मृतक-ग्रन्थि के पतन से बहुत कष्ट से भी उस खाट को नहीं छोड़ पाया।
तब उस कृपण की पत्नी ने अपने पुत्रों से कहा-“हे पुत्रों! यदि तुम पितृ-वत्सल हो, तो पितृ-भक्ति को दिखाते हुए अपने पिता की अन्तिम इच्छा के मुताबिक उनकी प्राणों से भी प्रिय इस खाट को मत छुड़वाओ।' तब माता के वचनों से उसके पुत्रों ने उसे खाट पर से नहीं उतारा और वह खाट पर रहा हुआ ही मर गया।