________________
धन्य-चरित्र/151 में कादम्बिनी की तरह छाछ के लिए धन्य के घर पर जाने लगीं । धन्य की आज्ञा से सौभाग्यमंजरी उन्हें छाछ देने लगी, क्योंकि पति के वश में रहना स्त्रियों का परम कर्तव्य है। एक बार धन्य ने अपनी प्रिया को इस प्रकार सिखाया - 'हे प्रिये! तीनों बड़ी बहुओं को तुम सज्जन के चित्त की तरह स्वच्छ-निर्मल अर्थात् असार छाछ दिया करो। जिस दिन छोटी बहू छाछ के लिए आये, तब उसे सारयुक्त दही-दूधादि दिया करो। प्रिय वचनों के द्वारा उसके साथ मैत्री करना। उसके साथ किसी भी प्रकार का भेद न रखना।"
सौभाग्यमंजरी ने पति के इस आदेश की खुशी-खुशी सिर पर धारण किया। उस दिन से सरलतापूर्वक वह पति के आदेशानुसार व्यवहार करने लगी। जिस दिन सुभद्रा छाछ के लिए आती थी, उस दिन वह प्रमोदपूर्वक दही, दूध, भोजन, खजूर, अखरोट, सीताफल आदि उसको देती थी। मधुर वचनों के साथ बातचीत करती थी । सुख - दुःख आदि तथा शरीर की कुशलता पूछती थी । तब सुभद्रा भी वैसी सुखभक्षिका वस्तुओं को लेकर अपने घर आकर वृद्ध के आगे रख देती थी।
वृद्ध वह सभी देखकर सुभद्रा की प्रशंसा करने लगा - 'हे पुत्रो ! देखो। देखो। भाग्यवान पुत्र की यह स्त्री भी भाग्यवती है। पुण्यवानों के भोगने योग्य सुख से खायी जानेवाली सामग्री लेकर आयी है । अन्य भी बड़ी बहुएँ प्रतिदिन जाती हैं, तो स्वच्छ जल जैसी छाछ ही प्रतिदिन लेकर आती हैं। अतः यहाँ अन्यथा कुछ भी नहीं समझना चाहिए। इनके द्वारा ऐसा कुछ भी नहीं किया गया है और न ही इसके द्वारा कुछ दिया गया है। यहाँ सब कुछ भाग्य के कारण ही है । 'प्राप्तिर्भाग्यानुसारिणी यह शास्त्रीय वचन सत्य ही है, क्योंकि यहाँ भाग्यानुसार प्राप्ति प्रत्यक्ष ही दिखायी दे रही है।"
धनसार के इस प्रकार के कथन को सुनकर ईर्ष्या-भाव से युक्त होते हुए बहुएँ कहने लगीं- 'बूढ़े बैल के समान इस वृद्ध ने पहले हमारे देवर की प्रतिदिन प्रशंसा करके सभी का स्नेह तुड़वाकर घर - त्याग करवाया । वह तो कहीं देशान्तर को भाग गया, जिसकी कहीं बात भी सुनने को नहीं मिलती । पुनः इसके पीछे लगकर न जाने क्या करेगा?"
तब एक ने कहा- 'हमारे ससुर इसको भाग्यशालिनी कहते हैं । पर इसका भाग्य तो देखो। प्रतिदिन प्रभात में उठकर गधी की तरह मिट्टी को ढोती है । सूर्यास्त के समय तक कर्मकर की वृत्ति को करके उदर की पूर्ति करती है। रात्रि में पति के वियोग से जनित दुःख से आर्त्त होकर भूमि पर शयन करती है । अहो ! इसकी भाग्यशीलता! ऐसा भाग्य तो शत्रु का भी न होवे | "
इस प्रकार परस्पर बात करती हुई बड़ी बहुएँ सुभद्रा से ईर्ष्या करने लगीं। पुनः दूसरे दिन प्रभात होने पर श्रेष्ठी ने बड़ी बहू से कहा - 'राजमन्दिर जाकर छाछ