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धन्य-चरित्र/174 प्रतिज्ञा को पूर्ण जानकर मन्त्री ने पुत्री से कहा-'हे पुत्री! तुम्हारी प्रतिज्ञा पूर्ण हुई। अतः अब इनके साथ तुम्हारा पाणिग्रहण करवाता हूँ।"
___ मन्त्री के इस प्रकार कहने पर उसने भी पिता के वाक्य का अनुमोदन किया, क्योंकि ईप्सित अर्थ को कौन नहीं मानता? तब मन्त्री ने अत्यधिक आदरपूर्वक धन्य का सत्कार करके उन दोनों का महा-महोत्सवपूर्वक पाणिग्रहण करवाया।
इसी नगरी में बत्तीस करोड़ सुवर्ण का स्वामी पत्रमल्ल नामका महा-इभ्य श्रेष्ठी वणिक रहता था। उसके विनयादि गुणों से युक्त चार पुत्र थे। पहले पुत्र का नाम राम, दूसरे का काम, तीसरे का धाम तथा चौथे का नाम साम था। उन सभी पुत्रों के ऊपर किसी भी दोष को आश्रय नहीं देनेवाली समस्त गुणों के एकमात्र मंदिर के सदृश प्रत्यक्ष लक्ष्मी की तरह लक्ष्मीवती नाम की पुत्री थी। इस प्रकार वह श्रेष्ठी समस्त सांसारिक सुखों से सुखी था। आत्मिक सुख पाने की लिप्सा से सुदेव-सुगुरुसुधर्म की तीव्र भक्तिपूर्वक आराधना करता था। प्रतिदिन साधु आदि पुण्यपात्रों का पोषण करता था। दीन-हीन-दुःखीजनों का अनुकम्पापूर्वक उद्धार करता था। तीर्थयात्रा, रथयात्रा, कल्याणकोत्सव, साधर्मिकवात्सल्य आदि में अत्यधिक मात्रा में धन का व्यय करते हुए पत्रमल्ल दुर्लभ सामग्रीवाले मनुष्य भव को सफल करता था। क्रम से तीनों वर्ग की आराधना करते हुए वह बुढ़ापे को प्राप्त हुआ। एक बार भैंसे के रोगों से व्याप्त की तरह वह शरीर के रोगों से अत्यधिक व्याकुल हुआ। तब पत्रमल्ल शरीर के चिह्नों द्वारा मरण को नजदीक जानकर बत्तीस द्वारों से बद्ध बृहत् आराधना को करने के लिए सावधान हुआ।
___ सबसे पहले परिग्रहादि मोह-मूर्छा को शिथिल करने के लिए पुत्रों को बुलाकर इस प्रकार कहा-“हे पुत्रों! मेरा कहा हुआ सुनो। इस जगत में लक्ष्मी रहित पुरुष का क्या कहीं भी गौरव देखते हो? क्योंकि गन्धरहित कस्तूरी को क्या कोई स्वीकार करता है? इसलिए एक लक्ष्मी ही सर्वत्र श्लाघा को प्राप्त होती है, जिससे कलंकित मनुष्य भी देवों से भी ज्यादा मान को प्राप्त होता है। और भी, जैसे अनेक पत्नियोंवाला पुरुष परस्पर दाराओं के कलह से व्याकुल होता है। वैसे ही परस्पर धातुओं के विमार्ग प्रवर्तन के योग से लक्ष्मी व्याकुल होती है। धर्म का मुख्य साधन लक्ष्मी ही कहा जाता है, जैसे कि धान्य की निष्पति में मुख्य साधन बादल ही है। कालिमा युक्त लक्ष्मी भी पुण्य का हेतु माननी चाहिए, क्योंकि पंक से कलुषित भी पृथ्वी निर्मल कमल के प्रसव का हेतु क्या नहीं होती? बल्कि होती ही है।
प्रासाद, प्रतिमा, संघ, तीर्थयात्रा आदि धर्म लक्ष्मी को आश्रित करके ही निष्पादित होते हैं। जैसे–पण्डितों के द्वारा अनेक अर्थ, अलंकार आदि से युक्त युक्तियुक्त तथा विद्वद्जनों के चित्त को आह्लादकारी विविध ग्रन्थ बुद्धि द्वारा निष्पादित होने पर भी उन्हें धन-खर्च द्वारा ही छपवाया जा सकता है। अतः लक्ष्मी सांसारिक लोगों के लिए इसलोक तथा परलोक में मुख्य इष्ट हेतु है।