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धन्य - चरित्र / 236
पूछा - "यह वेगवती इच्छित स्थान पर निर्विघ्न पहुँच जायेगी?"
तब उस कुशल निमित्तक ने कहा - "यह वेगवती सौ योजन तक जाने के बाद निश्चय ही मर जायेगी । पुनः इसके पीछे अनलगिरि विघ्न उपस्थित करेगा। अतः विघ्न नष्ट करने के लिए इसकी चार मूत्र - घटिकाओं को दोनों पार्श्व में दो-दो करके स्थापित कर देना ।"
इस प्रकार की नैमित्तिक के द्वारा कही हुई सलाह प्राप्त करके यौगन्धरायण ने वैसा ही करके वेगवती को तैयार किया । अत्यधिक दान पुनः देकर अंध-व्यक्ति को संतुष्ट किया । "यह बात किसी के आगे भी नहीं कहना'- इस प्रकार हिदायत देकर उसे भेज दिया।
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इस प्रकार वत्सराज, घोषवती वासवदत्ता, धात्री कंचनमाला, हस्तिमिण्ठ और वसन्तक- ये सभी वेगवती पर चढ़े । यौगन्धरायण के इशारे से वत्सपति रवाना हुआ। क्रमपूर्वक नगर से बाहर राजा के उतरने की वाटिका के समीप पहुँचकर क्षत्रिय के आचार में अग्रेसर क्षात्र धर्म की परिपालना के लिए वत्सराज ने स्वयं ही उद्घोष किया- "वासवदत्ता, कंचनमाला, मिण्ठ, वसन्तक, वेगवती, घोषवती आदि को वत्सराज स्वेच्छा से ले जा रहे है, अतः जो शूर है, वह इनकी मुक्ति के लिए मेरा पीछा करें।"
इस प्रकार उच्च स्वर में घोषणा करके वेगवती को त्वरित गति से प्रेरित करते हुए दौड़ाया। प्रद्योत राजा सहित सभी प्रमुख राजलोकों ने सुना । प्रद्योत ने क्रोधित होते हुए सेवकों को आज्ञा दी - "अरे! दौड़ो -दौड़ो । शीघ्र ही मेरे अपराधी को ग्रहण करो। मेरे सामने लेकर आओ ।"
राजा के इस प्रकार के कथन को सुनकर मंत्री - प्रमुखों ने कहा- "वह तो वेगवती पर आरूढ़ होकर गया है। उसे पकड़ना कैसे शक्य है?"
तभी एक मन्त्री ने कहा - "स्वामी! इसके पीछे अनलगिरि को छोड़ा जाये | बिना अनलगिरि के उस वेगवती की गति को रोकने में कौन समर्थ है?" राजा ने कहा- "ऐसा ही हो, पर उसे शीघ्र ही पकड़कर यहाँ लाना ही
होगा।”
तब अपने पुत्र के साथ सैनिकों को अनलगिरि पर चढ़ाकर रवाना किया। त्वरित गति से प्रेरित अनलगिरि पच्चीस योजन दूर तक गयी हुई वेगवती से मिला। तब दूर से अनलगिरि को आता हुआ देखकर वत्सराज ने एक मूत्रघटिका उसके मार्ग में फोड़ी । मूत्र - वासना से मूर्च्छित हाथी मूत्र को सूंघता हुआ वहाँ रुक गया। सैनिकों के द्वारा अत्यधिक प्रेरित करने पर भी वह पग-मात्र भी नहीं चला। एक घड़ी तक मूत्र की गंध से तृप्त होकर आगे चला । वेगवती