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धन्य-चरित्र/234 जैसे कि महावायु से सागर में पोतों का विनाश होता है। उस गज से दुःखित होते हुए लोग पूत्कार करने लगे। त्रिपथ, चतुष्पथ और महापथ पर हाथी के भय से कोई भी नहीं निकलता था। अगर कोई आवश्यक कार्य के लिए बाहर जाता भी था, तो हाथी के भय से वापस जल्दी ही आ जाता था।
राजा की आज्ञा से हाथी को दमन करने की कला को जाननेवाले अनेक विज्ञ सुभटों ने अपनी-अपनी कला और विकला दिखायी तथा श्रान्त हो गये, पर कोई भी उस हाथी को वश में न कर सका। नगर के लोगों की बढ़ती हुई पीड़ा को देखकर प्रद्योत राजा ने अभय से पूछा-“मेरे राज्य के जीवन रूप इस गज का वशीकरण किस उपाय के द्वारा होगा?"
राजा के इस प्रकार पूछने पर अभय ने कहा-“हे राजन! यदि वत्सराज वीणा वादनपूर्वक मधुर स्वर से गायें, तो यह हाथी वश में आ सकता है, अन्यथा नहीं।"
तब प्रद्योत राजा ने वत्सराज को बुलवाकर कहा-“हे कलानिधे! इस नगर के लोगों पर कृपा करके अपनी उस प्रकार की अनुभूत रागकला को स्फुरित करो, जिससे यह अनलगिरि वश में हो जाये और सरलतापूर्वक आलानबंध को स्वीकार कर ले। तुम्हारे सिवाय दूसरा मुझे कोई दिखायी नहीं देता, जो इस गज-भय का निवारण कर सके। अतः अनेक जीवों को अभय देकर गज को आलान में ले जाकर अपने क्षात्र-धर्म को सार्थक करो।"
तब वत्सराज ने कहा-"महराज! यह अनलगिरि अति उत्कट रूप से मदोन्मत्त है। अतः मुझ अकेले के गाने से वश में नहीं आयेगा। अतः यदि वासवदत्ता पर्दे में रहकर ही सुखासन पर बैठकर मेरे साथ गाये, तो यह गज हम दोनों के स्वर-मिश्रित गम्भीर ग्राम, मूर्च्छना के द्वारा मूर्च्छित होता हुआ वश में हो सकता है।"
तब राजा ने कहा-"वैसा ही करो। पर गज को वश में करो।"
फिर राजा की आज्ञा से वासवदत्ता पट से आवृत्त सुखासन में स्थित होकर गयी। फिर वत्सराज और वासवदत्ता ने समीप जाकर वीणा वादनपूर्वक दोनों के स्वर सम्मेलन से गीत गाया, जिससे गज स्वयं ही मद त्याग करके उन दोनों के मुख के आगे सिर हिलाता हुआ आकर स्थिर होकर खड़ा हो गया। वत्सराज ने भी दो घड़ी तक प्रबलतापूर्वक गीत गाकर उसे तृप्त करते हुए सरलता प्राप्त करवायी। तब कुमार भी फाला देकर उसके ऊपर चढ़ गया। उसके बाद उसे सुखपूर्वक आलान में ले जाकर दृढ़ बंधनपूर्वक बाँध दिया। फिर राजा के पास जाकर सम्पूर्ण निवेदन किया। राजा ने उसकी अत्यधिक प्रशंसा