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धन्य-चरित्र/239 जलाकर उसके अंदर प्रवेश करूँ। इस प्रकार मुझे मेरे चारों वरदान प्राप्त होवें।"
इस प्रकार के अभय के कथन को सुनकर दुःिखत होता हुआ राजा वर देने में अशक्य होता हुआ हाथ जोड़कर अभय को बोला- "हे अभय! तुम्हारी बुद्धि के आगे मेरी कुछ भी नहीं चलती है। मैं हारा, तुम जीते। अब तुम्हें जो अच्छा लगता है, वह करो।"
अभय ने कहा-"अभी तो केवल घर जाने की इच्छा है।" प्रद्योत ने कहा-"ठीक है, ऐसा ही होगा।"
ऐसा कहकर भव्य आभरण, वस्त्रादि देकर शिष्टाचार करके उसे विदा किया। अभय भी मौसी आदि की शिक्षा लेकर राजगृह की ओर रवाना होने के समय प्रद्योत को नमन करके कहने लगा-"महाराज! आपने कपट-धर्म के छल से मुझे यहाँ बुलवाया है, यह मैं भूला नहीं हूँ। उससे ज्यादा मैं आपको करके दिखाऊँगा। पर धर्म-छल किये बिना ही मैं आपको इसका फल खिलाऊँगा, छिपी हुई चोर-वृत्ति के द्वारा नहीं। मध्याह्न के समय से पहले ही आपके समस्त राज-परिवार के देखते ही देखते मैं यह सब करूँगा। आप अपने ही सामन्तों, सैनिकों व नगर-जनों के सामने "हे सामन्तों! हे सैनिकों! हे नगर-जनों! यह अभय मुझे बलपूर्वक ग्रहण करके ले जा रहा है। तुम लोग क्या देख रहे हो? मुझे इससे मुक्त करवाओ।" इस प्रकार चीख-पुकार करेंगे, पर आपको मुक्त करवाने कोई नहीं आयेगा। इस प्रकार सभी लोगों के समक्ष आपको पकड़कर ले जाऊँगा। अतः आप सावधानीपूर्वक रहें। बुद्धिमानों के साथ गुप्त मंत्रणा करके उस प्रकार से करें, जिससे कि इस संकट के निराकरण का उपाय शोध सकें।"
तब अभिमान की बहुलता के साथ प्रद्योत ने कहा-"ठीक है, ठीक है। जाओ, जाओ। अभी सब पता लग जायेगा। एक बार बिल्ली के मुख में चूहे की तरह लाये गये हो, क्या वह भूल गये? पुनः चकवा पक्षी के शिशु की तरह समय आने पर तुम्हे मँगवाऊँगा। आज तो मुझे वचन-बद्ध करके मुक्त हो गये हो, अतः व्यर्थ गाल बजा रहे हो। देखो-देखो, टेढ़े कांटोंवाला मत्कुण मेरे किले में गुड़ लाने की बात करता है। सैकड़ों-हजारों योद्धाओं तथा करोड़ों सामन्तों के बीच में से मुझे पकड़कर ले जाने की प्रतिज्ञा करता है। देख लिया तुम्हार सामर्थ्य ।"
अभय ने कहा-"कार्य करके ही प्रमाणित करूँगा। अभी कुछ भी कहने से क्या फायदा?"
इस प्रकार कहकर राजगृह की तरफ रवाना हुआ। कुछ ही दिनों में मगध के मण्डन-स्वरूप राजगृह नगरी को प्राप्त हुआ। आगे-आगे चलनेवाले चरों ने राजा श्रेणिक को बधाई दी–"हे स्वामी ! बुद्धि-बल के द्वारा प्रद्योत को