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धन्य-चरित्र/209 उपाय किये, पर वे सभी उपाय नपुंसक के आगे तरुणी के विलास की तरह निष्फल हुए। राजा के चारों हाथ भूमिसात् हो गये। वह विलाप करने लगा। तब किसी ने कहा- स्वामी! नगर में पटह बजवा दीजिए। कोई गुणी अवश्य ही मिल जायेगा।'
राजा ने पटह बजवाया-'जो कोई कुमार को जीवित करेगा, उसे एक लाख स्वर्णमुद्राएँ इनाम में दूंगा।'
इस प्रकार से पटह बजाते हुए राजसेवक वहाँ आये, जहाँ विप्र को गधे पर सेवक घुमा रहे थे। उसी समय नाग देवता ने देव के अनुभाव से अदृश्य रूप में आकर विप्र के कान में कहा – 'हे द्विजवर! मैं कुमार को जीवित करूँगा' इस प्रतिज्ञापूर्वक पटह का स्पर्श करो। मैं वही सर्प हूँ, जिसे तुमने बचाया था। हम तीनों का कहा हुआ तुमने नहीं माना। अयोग्य पर उपकार करने का ऐसा ही फल होता है।'
तब द्विज ने कहा - हे राजसेवकों! मुझे छोड़ो। मैं राजकुमार को जीवित करूँगा।'
राजसेवक दौड़ते हुए राजा के पास गये और विप्र का कहा हुआ हर्षपूर्वक राजा के आगे निवेदन किया। राजा ने कहा- 'उस विप्र को बन्धन-मुक्त करके शीघ्र ही लेकर आओ।'
सेवकों ने वैसा ही किया और विप्र को राजा के पास लेकर आये। राजा ने कहा-'हे विप्र! कुमार को जीवित करो। लगता है कि तुम्हीं ने मारा है और तुम ही जीवनदायक बनोगे। तुम जिस प्रकार विडम्बना को प्राप्त हुए हो, उसी प्रकार विपुल सम्मान को भी प्राप्त करोगे। अतः जल्दी करो।'
द्विज ने कहा-'नीति से विरुद्ध करने के कारण ही मैं विडम्बना को प्राप्त हुआ, पर अब फिर वह सभी घटना मैं आपको बताऊँगा।
इस प्रकार कहते हुए विष-व्याप्त कुमार के समीप जाकर चक्कर लगाकर धूप-दीप आदि महा-आडम्बरपूर्वक मार्जन करना शुरू किया। राजा आदि प्रमुख व्यक्ति उसे चारों ओर से घेर कर देख रहे थे।
तभी नाग देवता ने राजकुमार के शरीर में प्रकट होकर कहा-'हे द्विजवर! क्यों इस दुष्ट राजा के पुत्र पर उपकार करने के लिए प्रवृत्त हुए हो? क्या गधे पर आरूढ़ होने की विडम्बना को तुम भूल गये?'
राजा ने कहा-'मेरी दुष्टता कैसे?' ___ नाग ने कहा-'तुम्हारा पुत्र तो व्याघ्र के द्वारा मारा गया। उसके बाद कितना ही काल बीत जाने के बाद दैवयोग से हम तीनों मित्र कूप के अन्दर गिर गये। चौथा व्यक्ति सुनार भी उसी कुएँ में गिर गया। उस समय निष्कारण