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धन्य-चरित्र/211 आया हुआ यह सुनार अनर्गल स्वर्ण को याद करके व्याकुल होगा। जिसकी चेतना रतिमात्र स्वर्ण को देखकर विफल हो जाती है, उसको पुनः यह अनर्गल देखकर क्या कुछ नहीं होगा? अतः निश्चय ही किसी बलवान के साथ विभाग करके अवश्य ही ग्रहण कर लेगा। हम सबको तो बहुत से द्रव्य-हरण का छल मस्तक पर डालकर संकट में डाल देगा। अतः अब क्या करना चाहिए?'
तब एक ने कहा-'यदि मेरा कहा हुआ करोगे, तो कुछ भी विघ्न नहीं होगा।'
उन्होंने पूछा-कैसे?'
उसने कहा-'घन-छेदनिका आदि तो हाथ में आ ही गयी है। उसके द्वारा घन-छेदनिका से दिखायी देनेवाले उपरितन भाग को लेकर तथा शेष भाग को आच्छादित करके चले जाते हैं। बाद में प्रतिदिन आकर अपना इच्छित काम करेंगे। अब यदि वह आता है, तो उसे कहेंगे कि शीघ्रतिशीघ्र पानी खींचो। फिर से प्यास लगी है। यह सुनकर जब वह जल लाने के लिए कूप के तट पर बैठेगा, तब पीछे से सभी जन मिलकर हाथों से धक्का देकर उसे कूप में गिरा देंगे। वह शीत जल से मर जायेगा।
यह सुनकर सभी सहमत हो गये। वे सभी चुप हुए, तब तक वह सुनार भी देह-चिंता से निपट कर आ गया। तब चोरों ने कहा-'भाई! जल निकालो। सरस भोजन के कारण पुनः प्यास लग गयी है।"
स्वर्णकार भी उनका कथन सुनकर सोचने लगा-"विषवाले मोदकों ने अब असर दिखाना शुरू किया है। अब पानी पीकर सभी भूमि पर गिर जायेंगे और दीर्घ निद्रा को प्राप्त हो जायेंगे। इसके बाद मैं ही सब कुछ ग्रहण कर लूँगा।
इस प्रकार आर्त्त-रौद्र ध्यान ध्याते हुए जब पानी खींचने के लिए कूप के पास पहुँचा, तब पूर्व योजनानुसार उन सभी ने उसे कूप में गिरा दिया। वे चोर भी घड़ी मात्र में ही विष के प्रभाव से मृत्यु को प्राप्त हुए।
यह सभी लक्ष्मी के द्वारा सरस्वती को दिखाते हुए कहा गया-'हे सरस्वती! देखा जगत का आश्चर्य! इन दसों के द्वारा 11वें प्राण के लाभ की आशा से दस प्राण दे दिये गये, पर 11वाँ प्राण किसी ने भी प्राप्त नहीं किया। मैं लोगों को सैकड़ों-हजारों संकटों में डालती हूँ| रोगों से पीड़ित करती हूँ, चाबुक के आघात से ताड़ित करती हूँ, भिक्षाटन करवाती हूँ, कारागार में डलवाती हूँ। ज्यादा क्या कहूँ? क्रुद्ध शत्रु जो कुछ नहीं करता, वे सभी दुःख मैं देती हूँ। फिर भी संसारी जीव मेरा पीछा करना नहीं छोड़ते। मेरे लिए माता-पिता, पुत्र, नारी,