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धन्य-चरित्र/218 बोलकर मुझे क्या फायदा होगा? मैंने जैसा देखा है, वैसा ही कहा है। इसमें संदेह करना योग्य नहीं है। मैं कुछ भी न्यूनाधिक नहीं जानता हूँ। तुम्हारा कल्याण हो, अब मैं जाता हूँ।
ऐसा कहकर याचक चला गया। श्रेष्ठी विचार करने लगा-"यह बात तो उत्पात के समान असम्भव है। केवल असत्य भी न हो, तो भी कुछ न्यूनाधिक तो है ही। मूल से तो असत्य नहीं हो सकती। अतः मैं शीघ्र ही जाता हूँ। अगर कार्य है भी, तो वापस आ जाऊँगा।"
इस प्रकार विचार करके उसी दिन रवाना होते हुए मार्ग में किसी ग्राम में रात्रि-निवास किया, पर आर्त्त-ध्यान के कारण नींद नहीं आयी। आर्त्त-ध्यान में ही रात्रि बिताकर प्रभात में अपने नगर की ओर प्रस्थान किया। तब कपटी धनकर्मा ने देव-प्रयोग से यह जानकर पहले ही द्वारपालकों से कह दिया- "हे सेवकों! अभी नगर में बहुरुपिए अत्यधिक आये हुए हैं। वे लोगों को विविध धूर्तकलाओं से ठगते हैं। कोई-कोई तो गृहस्वामी का रूप बनाकर घर के अन्दर प्रवेश करके घर की सार-सार वस्तु को लेकर चले जाते हैं। अतः सावधान रहना। किसी भी अज्ञात व्यक्ति को घर में प्रवेश न करने देना।"
___ मध्याह्न होने पर मूल धनकर्मा अपने नगर में पहुँचा। नगर में प्रवेश करते हुए वह लोगों के द्वारा देखा गया। उसे उस रूप में देखकर लोग परस्पर कानों में बातें करने लगे-"अहो! आज यह धनकर्मा अपना पुराना वेश धारण करके पादचारी होकर कहाँ से आया है?"
यह सुनकर किसी एक ने कहा- “यह धनकर्मा नहीं है, धनकर्मा के समान रूपवाला कोई पथिक जा रहा है।"
तब किसी एक ने कहा-"तुम सत्य ही कह रहे हो, क्योंकि मैंने आज सुबह ही सुखासन पर आरूढ़ होकर बहुत से सेवकों के साथ घिरे हुए उसे जाते देखा है।"
तब दूसरे ने कहा-"धनकर्मा तो यही है, क्योंकि इसे देखते हुए ही मेरा समग्र जन्म बीता है। अगर न हो, तो शर्त लगाता हूँ।"
इस प्रकार अनेक बातें करते हैं, तब तक मूल धनकर्मा सब कुछ सुन लेता है। मन में कुछ-कुछ विचार करने लगता है कि यहाँ क्या कारण हो सकता है? पर एक बार घर में प्रविष्ट होकर सुस्थित हो जाऊँ, बाद में खोज करूँगा। इस प्रकार विचार करते हुए घर के आँगन में पहुँचा। पर कोई भी सेवक न उठता है, न प्रणाम करता है। यह देखकर "ये कौन हैं?" इस प्रकार विचार करते हुए घर में प्रवेश करने लगा, तो सेवकों ने कहा-“कहाँ जाते हो?