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धन्य-चरित्र/229 अभय के आदेश से एक बड़ी लम्बी दीवार करायी गयी। फिर दीवार के आगेवाले भाग में मोदकों को रखकर उन पर जल डाला गया। दीवार के पिछले भाग में आकर सभी स्थित हो गये। क्षण भर में मोदकों के खण्डों में दृष्टिविष सर्प उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होकर जहाँ-जहाँ नाग गया, वहाँ-वहाँ उसके दृष्टि-प्रसार मात्र से सम्मुख रहे हुए वन के वृक्ष और प्राणी सभी दग्ध हो गये। स्वयं भी वन-ज्वाला से मर गया। तब चमत्कृत होते हुए राजा ने कहा-“मैं तुम पर अत्यन्त प्रसन्न हुआ हूँ। अतः तुम बंधन से मुक्ति के अलावा तुम्हारा मन-इच्छित वर माँगो।"
इस प्रकार राजा के कथन को सुनकर अभय ने कहा- "आप मेरे वर को अपने पास ही थापण के रूप में रखें। समय आने पर माँगूंगा।"
राजा ने कहा-"ऐसा ही होगा।" सभी घर लौट गये। अभय की अत्यधिक प्रशंसा हुई।
उस प्रद्योत राजा की वासवदत्ता नाम की पुत्री 63 कलाओं में अत्यधिक कुशल थी, पर संगीत-रत्नाकरादि कला में न्यून थी। अतः उसे सीखने की इच्छा से अध्यापक की गवेषणा की इच्छा से पिता को कहा-“हे तात! मुझे संगीत शास्त्र पढ़ाने के लिए अति अद्भुत संगीत शास्त्र को पढ़ाने में कुशल किसी अनन्य पाठक को खोजकर बुलवाकर मुझे अर्पित करें।
राजा ने कहा-“हे पुत्री! चिन्ता मत करो। अपने देश में से या परदेश में से खोजकर बहुमानपूर्वक उसे बुलवाकर तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूँगा। "बहुरत्ना वसुंधरा" है। अतः गवेषणा करने पर ऐसा व्यक्ति जरूर मिलेगा।
इस प्रकार पुत्री को संतुष्ट करके सभा में आकर अपने मंत्रियों से कहा- हे मंत्रियों! संगीत शास्त्र में विशारद महा पण्डित को खोजो।"
तब सचिवों ने कहा-"स्वामी! वर्तमान समय में तो शनानीक-पुत्र उदायन ही सर्व गांधर्व आगमों में पारंगत और अद्वितीय है। जो गीत और वीणा-वादन के द्वारा निरपराध मृगों को वश में करके वन में बाँध देता है। उसका ऐसा अद्भुत कौशल है। अगर कोई आकर कहता है कि आज उपवन में हाथी आया है, तो सुनने मात्र में ही एकाकी वन में जाकर गीत के द्वारा गज को वश में करके वन में बाँध देता है। हाथियों को बाँधने के व्यसनवाले उसको यहाँ बाँधकर ले आया जाये।"
राजा ने कहा-"यह कैसे हो सकता है? मेरे द्वारा तो पूर्व में श्री वीर प्रभु के सामने उसे पुत्र रूप में माना गया है। उसके ऊपर सेना भेजना उचित नहीं है। सेना के बिना उसे कैसे लाया जा सकता है?"
सचिवों ने कहा-"स्वामी! हस्ति-छल से उसे लाया जा सकता है।"