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धन्य-चरित्र/228 मुझे दिखाओ।"
उसने वह पाथेय राजा के सामने रखा। राजा ने भी उन मोदकों को अपने हाथ में लेकर अच्छी तरह से निरीक्षण किया, पर सुगन्धित राजद्रव्य से मिश्रित होने से नासिका में सुगंध की ही वृद्धि हुई। पुनः उस पाथेय की विशेष परीक्षा के लिए जो परीक्षण करने में कुशल थे, उनके हाथ में दिये गये। उन्होंने भी विविध प्रकार की शास्त्र की उक्तियाँ तथा अपनी बुद्धि के द्वारा परीक्षा की, पर किसी को भी रहस्य ज्ञात नहीं हो पाया। किसी ने निर्विष–भाजन में भी इन्हें रखा, पर फिर भी दूषण ज्ञात न हो सका। तब सभी ने राजा से कहा-"इन मोदकों में विषादि दूषण नहीं है।"
तब राजा ने अभय कुमार से कहा-"इस पाथेय को खाने के लिए बैठने पर लौहजंघ को बार-बार शकुनों द्वारा निषिद्ध किया गया। इस कारण से इस पाथेय में शंका उत्पन्न हो गयी है। पर किसी ने भी इसमें दोष प्रकट नहीं किया है। इसी कारण से मैं पूछता हूँ कि ये मोदक शुद्ध है या अशुद्ध? चूंकि तुम सभी निपुणों में शिरोमणि हो, अतः निश्चित करके कहो।"
राजा द्वारा कथित शब्दों को सुनते हुए मुस्कराते हुए अभय ने मोदकों को हाथ में लिया। औत्पातिकी बुद्धि के द्वारा द्रव्यानुयोग शास्त्र से परिकर्मित मति से उस पाथेय का रहस्य जान लिया। सिर हिलाते हुए राजा को कहा-'इस पाथेय में द्रव्य-संयोग से उत्पन्न दृष्टिविष सर्प है।"
___ अभय के कथन को सुनकर राजा ने चमत्कृत होते हुए कहा-"तुम्हारे द्वारा तो कोई अनिर्वचनीय परीक्षा की गयी है, क्योंकि खाण्ड-घृत आदि से निर्मित इन सघन मोदकों में सर्प कैसे प्रविष्ट हुआ? तुम्हारे कथन को सुनकर सारी सभा हँस रही है, पर हमें तो तुम्हारे कथन पर विश्वास है। अभय कभी मिथ्या नहीं बोलता। अतः सत्य और विश्वास करवाने लायक वचन बोलो, जिससे कि ये लोग अपना मुख नीचे करें।"
अभय ने कहा-"राजन! इन टूटे हुए मोदकों में प्रकट रूप से तो सर्प दिखायी नहीं देता है। पर जलादि द्रव्य के संयोग से दृष्टिविष सर्प उत्पन्न किया जाता है। जिससे इन मोदकों को खाकर यदि पानी पिया जाये, तो उदर में संमूर्छिम सर्प उत्पन्न होकर मुख से पूत्कार करता है, उसके विष से हृदय जलता है तथा खानेवाला मर जाता है। किसी ने भी द्वेष की बुद्धि से गुप्त विष बनाकर मोदकों में डाला है। अगर आपको इस पर भी विश्वास न हो, तो वन में चलकर मोदकों की परीक्षा की जाये।"
चमत्कृत राजा सभाजनों को लेकर अभय के साथ वन में गया। वहाँ