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धन्य - चरित्र / 222
आपका यह नगर भी बहुत बड़ा है। यहाँ कोई भी देव- प्रदत वरदानवाला अथवा अतुल चातुर्यवाला चार बुद्धियों का धारक कोई न कोई अथवा अत्यधिक पुण्यनिधि स्वरूप कोई पुरुष अवश्य होगा । अतः इस नगर में किसी भी अति अद्भुत वस्तु के प्रदानपूर्वक पटह बजवाइए, जिससे आपके पुण्यबल से कोई भी उस प्रकार का पुरुषरत्न अवश्य प्रकट होगा और इनका निर्णय करेगा, जिससे आपकी सभा के महत्त्व की वृद्धि होगी ।”
उसके कथन को सुनकर राजा ने जल्दी से " जो प्रतिभावान पुरुष - श्रेष्ठ इन दोनों के सत्य-असत्य का निर्णय करेगा, उसे अत्यधिक धन से युक्त धनकर्मा की पुत्री दी जायेगी'- इस प्रकार पूरे नगर में पटह उद्घोषणा करवा दी। यह पटह उद्घोषणा त्रिक, चतुष्क, चत्वर आदि मार्गों में बजते-बजते जहाँ धन्य रहता था, वहाँ पहुँची । गवाक्ष में स्थित धन्य ने सुनकर थोड़ा-सा हँसते हुए सभ्यों के आगे कहा- "राजा की महान सभा में इतने मात्र का निर्णय क्या किसी के द्वारा भी नहीं किया जा सका?"
सभ्यों ने कहा - "स्वामी! आप जैसे बुद्धिमान के बिना कौन कर सकता
यह सुनकर धन्य ने पटह का निषेध किया और शीघ्र ही राजा के पास गया। राजा भी पहले से उसकी घटना सुनकर अत्यधिक प्रसन्न हुआ । मन में अवधारण किया कि " निश्चय ही यह पुण्यवंत बुद्धिमान इन दोनों का यथार्थ विभाग करेगा ।"
सभा में आये हुए धन्य को देखकर राजा ने अत्यधिक बहुमानपूर्वक अपने समीप बिठाया और सम्पूर्ण घटना बतायी । धन्य ने कहा - "स्वामी! जगत में सत्य धर्म के सदृश कुछ भी नहीं है, जो कि विश्वास का आयतन है । स्वामी ! इन दोनों का विभाग किसी ने भी नहीं किया, पर सत्य धर्म सत्य और असत्य का विभाग करेगा । अतः इन दोनों को स्नानपूर्वक दिव्य कराया जाये। जो सत्य होगा, वह सुख से दिव्य करेगा, दूसरा नहीं । ”
इस प्रकार धन्य के कथन को सुनकर राजा ने भी अनुमति दे दी । तब धन्य ने नालिका सहित एक कुम्भ मँगवाया और सभा में स्थापित कर दिया । अनेक लाखों लोग यह सब देखने के लिए वहाँ इकट्ठे हुए। उन दोनों को भी सभा में बुलाया गया। राजा के सम्मुख उन्हें बैठाया गया। तब धन्य ने उठकर उन दोनों से कहा - " आप दोनों स्नान करके धोती धारण करके शीघ्र ही सभा में आयें।"
उन दोनों के द्वारा वैसा ही किये जाने पर पुनः धन्य ने कहा - "तुम