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धन्य-चरित्र/190 मर गये। क्या करूँ? कर्मों की गति अनिर्वचनीय है। कौन जानता है कि क्या हुआ और क्या होगा? अब तो में अकेली ही हूँ। ऐसे पात्र तो मेरे पास बहुत हैं। पर मेरी सेवा करनेवाला कोई नहीं हैं। जो मेरी सेवा करेगा, सारी जिन्दगी मेरे अनुकूल रहेगा, उसे अपना सर्वस्व दे दूंगी। रखने से क्या प्रयोजन? लक्ष्मी तो कभी किसी के साथ नहीं जाती, न गयी और न ही जायेगी।"
ऐसा कहकर झोली में से निकालकर उसे दिखाने लगी। वह भी झाँककर झोली के अन्दर देखने को प्रवृत्त हुई। झोली के अन्दर अनेक रत्नमय पात्र, अनेक रत्नाभूषण, अनेक मोतियों के आभूषण तथा एक-एक करोड़ मूल्यवाले पृथ्वी पर अलभ्य, अदृष्ठपूर्व पुरुष-स्त्री के योग्य वस्त्र थे। तब बहू झोली के अन्दर रहे हुए आभूषण देखकर कथा-श्रवण को तो भूल ही गयी। चित्त लोभ से अभिभूत हो गया। लोभ से रंजित होते हुए वह बहू उस बुढ़िया को बोली-“हे वृद्धमाता! तुम दुःखी क्यों होती हो? तुम्हारी सेवा मैं करूँगी। तुम तो मेरी माँ के समान हो, मैं तो तुम्हारी पुत्री हूँ। मैं मन-वचन-काया से यावज्जीवन तुम्हारी सेवा करूँगी। आप कोई भी शंका मन में न रखें। न ही कोई भेद मन में रखें। आप घर के अन्दर जाओ। सुखपूर्वक भद्रासन पर बैठो।"
तब वह बुढ़िया भी धीरे-धीरे पैर रखती हुई किसी भी तरह से द्वार के पासवाले प्रदेश के मध्य भाग में आकर आसन पर बैठ गयी। वह बहू तो “खमा-खमा" कहती हुई दासी होकर उसके आगे खड़े होकर चापलूसी करने लगी। तब उस बुढ़िया ने पुत्रवधु से पूछा-"बेटी! तुम मुझे रखना चाहती हो, तो क्या इस घर में तुम ही मुखिया हो, जिससे कि निःशंक होकर आमन्त्रण दे रही हो?" __ बहू ने कहा-“माता! मैं मुखिया नहीं हूँ। मुखिया तो मेरे सास-श्वसुर हैं।"
बुढ़िया ने कहा-"तो फिर उनकी आज्ञा के बिना तुम मुझे रखने में कैसे समर्थ हो सकती हो?"
तब उसने कहा-“इस घर में मेरे ससुर, सास, जेठ, जेठानी, देवर, देवरानी सभी मिलजुल कर रहते हैं, अतः आप सुखपूर्वक रहें।"
बुढ़िया ने कहा-“ऐसा तो नहीं हो सकता। जब तुम्हारे श्वसुर-सास सम्मानपूर्वक मुझे निमन्त्रित करेंगे, तभी मैं यहाँ रहूँगी, अन्यथा तो घड़ी-मात्र भी नहीं रहूँगी। हे भद्रे! एक के मन में प्रीति हो, दूसरे के मन में अप्रीति हो, तो वहाँ निवास करना अयुक्त है।"
उसने कहा-"अगर वे सभी आपको विनय-युक्त होकर आमन्त्रण करते हैं, तब तो आप निवास करोगी न। बुढ़िया ने "हाँ" कहा।
तब जहाँ ढ़के हुए द्वार के अन्दर बैठी हुई सास विद्वान को सुन रही थी, वहाँ जाकर बहू ने सहसा कहा-"आप जल्दी से घर के अन्दर आयें।"
___ तब सास ने सुनने में विघ्न पड़ने से कुपित होते हुए कहा-"मूर्ख! क्यों व्यर्थ