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धन्य-चरित्र/204 पुकारा। वह भी उनकी आवाज सुनकर शीघ्र ही बाहर आया और बोला-"घर के अंदर पधारें। क्या लाये हैं, उसे आप दिखाइए।"
यह सुनकर चोरों ने कहा-“लाये-लाये क्या चिल्लाते हो? हम तुम्हारे दारिद्र्य का नाश करनेवाली एक निधि अपने हक में करके तुम्हे बुलाने के लिए आये है। अतः घन-छेदनक आदि हाथ में लेकर शीघ्र ही चलो। देर मत करो। जो घटिका बीत रही है, उसे लाख स्वर्णमुद्रा देकर भी नहीं खरीदा जा सकता। अतः तुम शीघ्रता करो।"
स्वर्णकार ने कहा-"मैं तो आपका हुक्म बजानेवाला हूँ। पर फिर भी आप मुझे बतायें कि आपने किस जगह और कौन-सी रीति से निधि देखी है? उसमें क्या है? जब अपने अधीन कर ली थी, तो फिर लेकर क्यों नहीं आये? वह निधि कितने परिमाण में है? इत्यादि सब कुछ आप साफ-साफ बतायें, जिससे मैं भी योग्य-अयोग्य के विभाग को जान पाऊँ। उसके बाद ही आपके साथ आऊँगा।"
तब चोरों ने उसे सब कुछ विस्तारपूर्वक बताया। वह सब सुनकर स्वर्णकार चमत्कृत चित्त से विचार करने लगा-"चोरों की बात असत्य प्रतीत होती है। लोक में भी कहा जाता है कि
द्वात्रिंशल्लक्षणो महान पुरुषः चौरश्च षट्त्रिंशल्लक्षणो भवति।
अर्थात् महान पुरुषों के 32 लक्षण होते हैं, जबकि चोर के 36 लक्षण होते हैं। ये पूर्ण निर्णय के बिना नहीं आये हैं। अगर मैं इनके साथ जाऊँगा, इनका कहा हुआ कार्य करूँगा, तो मुझे एक धडिका (42 रत्ती प्रमाण), दो धड़िका या तीन धडिका-मात्र देंगे। आप्त-संतति के भोगने योग्य अन्य सर्व धन को ये लोग लेकर चले जायेंगे। अपरिमित धन-लाभ की अपेक्षा से तो मेरे घर में आधा धन भी नहीं आयेगा। मैं तो “सूपकारिकाणां धूमः'- इस न्याय के अनुसार अति अल्प ही लेकर आऊँगा। अतः मैं अपनी बुद्धि से ऐसा कुछ करूँ, जिससे वह सभी मेरा हो जाये। तभी मेरे बुद्धि-कौशल की प्रशंसा होगी। चोर तो दूसरों के धन का हरण करने में तत्पर होते हैं तथा सभी को दुःखदायक होते हैं। इन्हें ठगने में क्या दोष है? बहुत से लोगों को दुःखोत्पादक व्यक्तियों का निग्रह करना ही चाहिए-ऐसा नीति का वचन है। धन भी इनके पिताओं द्वारा तो स्थापित नहीं किया गया है, जिससे कि लोक-विरुद्ध पाप लगे। अतः इनका निग्रह करके वह सभी धन आत्मसात् करूँगा। मेरे ही भाग्योदय से खिंचे हुए ये मेरे पास आये हैं। अतः मुख के सामने आये हुए कौर को कैसे छोडूं।
इस प्रकार मन में विचार कर स्वर्णकार ने चोरों से कहा-"हे स्वामी ठाकुरों! मैंने आज शाम का भोजन नहीं किया है। रसोई भी अब बनेगी। आप लोग भी भूखे होंगे। कार्य भी महाप्रयास से साध्य होनेवाला है। भूखे व्यक्ति में बल और स्फूर्ति नहीं होती। बल व स्फूर्ति के बिना कार्य नहीं होगा। अतः घड़ी-दो घड़ी मेरे घर पर