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धन्य-चरित्र/175 और भी, पिता के द्वारा बचपन में लालित, पालित, पोषित पुत्र यदि युवावस्था में धनोपार्जक और घर का निर्वाहक नहीं होता है, तो पिता उस पुत्र को लड़की जितना उपयोगी भी नहीं मानता है, बल्कि 'हमारे घर को डुबानेवाला है इस प्रकार बोलता है। और अगर वह अपरिमित धन का उपार्जन करता है, तो अत्यधिक खुश होते हुए पिता प्रशंसा करता है-'यह पुत्र हमारा कुलदीपक है, यही हमारा कुल-मण्डन है।' माता भी अनेक मनोरथों के साथ प्राप्त पुत्र का अनेक मनोरथों की आशा से लालन-पालन करती है और उसके मुख को देखकर हृदय के उल्लास को प्राप्त होती है। उसके बाद जब वय प्राप्त होने पर भी धनोपार्जक नहीं होता है, वही माता इस प्रकार बोलती है-'मेरी कोख में पैदा होते ही क्यों नहीं मर गया?'
___ औरत भी तब तक ही प्रेम से बोलती है, जब तक कि पुरुष से इच्छित वस्त्राभूषण आदि प्राप्त होता है। वह प्रशंसा करती है-'कामदेव के रूप के समान मेरा पति है। अन्यथा तो ढूंठ है, यह पंगु मार्जार के समान हैं, इस प्रकार निन्दा करती है।
स्वजन भी तब तक ही सज्जन भाव का प्रदर्शन करते हैं, जब तक कि घर में लक्ष्मी का वास होता है। नागरिक भी आदर-सत्कार-सम्मानादि तभी तक देते हैं, जब तक कि धन पास में है। कलावन्तों की कला, विद्यावन्तों की विद्या, मतिमन्तों की मति, गुणवन्तों के गुण तभी तक प्रंशसा के योग्य होते हैं, जब तक लक्ष्मी उनके घरों में स्थिर रहती है। धनवानों में हजारों दोष होने पर भी उनके गुण ही लोगों द्वारा गाये जाते हैं। यदि धनी ज्यादा बोलता है, तो उसे वाक्यपटु कहा जाता है और कम बोलता है, तो असत्य के भय से कम बोलता है-ऐसा कहा जाता है।
अगर धनी जल्दबाजी मे कार्य करता है, तो 'यह उद्यमी, प्रमाद-परिहारी तथा आलस-रहित है' ऐसा कहा जाता है। अगर आलस के कारण काम में मन्द होता है, तो 'धीर है, सहसा कार्य नहीं करना चाहिए-इत्यादि नीति वाक्यों में कुशल है'-इस प्रकार लोग बोलते हैं।
अगर धनी बहुत खानेवाला होता है, तो लोग कहते हैं-'प्रबल पुण्योदयवाला है, जिससे दोनों शक्ति से सम्पन्न होने से क्यों न खाए? क्योंकि
भोज्यं भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिर्वराः स्त्रियः।
विभवो दानशक्तिश्च अनल्पतपसः फलम् ।। अर्थात् भोज्यशक्ति, रति-शक्ति, श्रेष्ठ स्त्रियाँ, वैभव और दानशक्ति-ये महान तपस्या के फल हैं।
इत्यादि रूप से स्तुति करते हैं। अगर वही पुनः स्वल्प-भोजी होता है, तो 'इसका मन सर्व-सम्पन्न होने से भरा हुआ है' ऐसा बोलते हैं।
यदि धनी वस्त्र-आभरण आदि के आडम्बरपूवर्क बाहर जाता है, तो 'इसने पूर्व में प्रबल पुण्य किया है, जिससे यथाप्राप्त में विलास करता है, लब्ध का सार ही