________________
धन्य-चरित्र/166 और भी, यह धरती कभी कम्पन युक्त हो जाये, अमाप जल से युक्त सागर शुष्कता को प्राप्त कर ले, सूर्य पश्चिम में उगने लगे और पूर्व में अस्त होने लगे, फिर भी यह धन्य कुमार्ग का ध्यान तक मन में नहीं ला सकता-ऐसी प्रतीति आबाल-गोपाल को है, अतः उसका विरुद्ध आचरण सम्भव ही नहीं है। दूसरी बात यह है कि इसी वैदेशिक कुटुम्ब का धन्य के द्वारा पूर्व में परिपालन किया गया, अब सज्जन होते हुए भी क्रुद्ध होकर इसके द्वारा वृद्ध आदि को रोका गया है, तो जरूर इसमें कोई राज है। वह ज्ञात नहीं हो पा रहा है, क्योंकि पहले छोटी बहू को रोका, फिर वृद्ध को रोका, उसके बाद वृद्धा को रोका, फिर तीनों पुत्रों को रोका। पर इन तीनों पुत्रवधुओं को क्यों नहीं रोका? इसमें जरूर कोई कारण है। अगर देव आज्ञा करें, तो इस कारण को गूढ होते हुए भी हम प्रकट करने का प्रयास करेंगे, क्योंकि नित्य आपकी सेवा करनेवाले हम मन्त्रियों के शास्त्र-चक्षु क्या अदृश्य हो गये हैं? बुद्धि से दुष्कर भी जाना जा सकता है। हमारी बात अगर आपके मन में उतरती है, तो हम इसका गुह्य प्रकट करेंगे।
इस प्रकार मन्त्रियों का कहा हुआ सुनकर राजा ने कहा-“हे मन्त्रियों! यदि इस प्रकार का आपका बुद्धि-प्रागल्भ्य है, तो शीघ्र ही गूढ तथ्य प्रकट करें।
तब राजा के आदेश को प्राप्त करके मन्त्रियों ने शीघ्र ही उन तीनों बहुओं को बुलाकर पूछा-'तुम लोग कहाँ से आये हो? किस कुल के हो? किस प्रकार के धनी थे? किस गाँव के निवासी हो? किस आपत्ति में गिर जाने के कारण यहाँ आना हुआ? यह सभी जिस प्रकार भी घटित हुआ है, वह सभी सत्य-सत्य बताओ।" मन्त्रियों के कथन को सुनकर आँखों से अश्रु बरसाते हुए उन तीनों ने मूल से लगाकर अपने कुल आदि के वृत्तान्त यावत् तालाब खोदने तक की घटना वास्तविक रूप में उनके सामने रख दी। तब प्रतिभा-कुशल मन्त्रियों ने उनकी कहानी सुनकर वस्तु-तत्त्व को जान लिया। कुछ आश्चर्य के साथ मुस्कुराते हुए परस्पर एक-दूसरे के मुख को देखते हुए विचार किया। फिर बोले-'भाइयों! इन्होंने जो कुछ भी कहा है, उससे ज्ञात होता है कि क्या यह अत्यन्त भाग्यवान इनका देवर धन्य ही है? वह धन्य ही है। पूर्व में कहे हुए संवाद के कारण हार्द प्राप्त हो गया। उस बुद्धिमान के द्वारा छाछ आदि के दान द्वारा माया करके पहले अपनी पत्नी को घर में स्थापित किया, बाद में पिता आदि को भी घर में रख लिया। इनको नहीं रखा, क्योंकि उसने अपनी पत्नी के खिलाफ इनके द्वारा कुछ भी दुर्वाक्य-अभ्याख्यान आदि प्रतिकूलता प्राप्त की होगी। अतः इनको शिक्षा देने के लिए इनका ग्रहण नहीं किया।"
इस प्रकार मन्त्रियों ने परस्पर विचार करके उन स्त्रियों को कहा-'हे नारियों! तुम्हारे द्वारा कहे गये भाग्यनिधि धन्य नाम के तुम्हारे देवर को पहचानने का क्या कोई चिह्न है, जिससे कि उसे पहचाना जा सके?"
इस प्रकार के मन्त्रियों के वचन सुनकर क्रोध का त्याग करके सन्तोष को