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धन्य-चरित्र/169 मेरे द्वारा पहले इनकी चित्त-प्रसन्नता के लिए जलधारा की तरह अनेक उपकार किये गये, पर इन पर ऊसर भूमि पर बीज बोने की तरह सभी व्यर्थ साबित हुए। जो सुकुलीन स्त्रियाँ होती हैं, उनके द्वारा प्रतिबोधित भाई उन्मार्ग प्रवृत्ति से तटस्थ भींत की तरह निवारित नदी के प्रवाह की तरह सुन्दर रूप से व्यवहार करते हैं। इसी कारण से मैंने इनका मद भेदने के लिए तथा वक्रता का नाश करने के लिए इन उपायों के द्वारा खेदित किया। जिस प्रकार सुवैद्य के द्वारा विषम ज्वर का नाश करने के लिए शरीर को सुखाया जाता है, वैसे ही मेरे द्वारा भी किया गया। और कोई बात नहीं है।
इस प्रकार प्रेमपूर्वक बात-चीत के द्वारा शतानीक प्रसन्न होता हुआ उसके भाग्य की अद्भुतता से चकित होता हुआ अपने आवास में चला गया। सैनिकों व मन्त्रियों द्वारा प्रशंसित धन्य ने अपने पुर में आकर खुशियों से प्रसन्नचित्त माता-पिता तथा भाइयों आदि को नमस्कार किया। उन्होंने भी अच्छे मन से उसको आशीर्वाद दिया। उसके बाद सभी ने एक-दूसरे से पूर्व वृत्तान्त पूछा। सभी ने यथा-स्थिति कथन किया। इस प्रकार धन्य भक्ति-पूर्वक अपने स्वजनों का सम्मान करते हुए राजाओं में चक्रवर्ती की तरह स्वजनों के बीच शोभित होने लगा।
इस पल्लव में जो सहस्रार-मणि की परीक्षा की गयी, शतानीक की पुत्री के साथ विवाह हुआ, शतानीक के भटों के साथ युद्ध के लिए प्रगुणी भूत होना, दुःख-आपत्ति के स्थान पर स्वजनों से मिलना-यह सभी दान रूपी कल्पद्रुम के पुष्पों की थोड़ी सी लीला-मात्र थी। अतः हे भव्यों! रात-दिन सुपात्र-दान की प्रवृत्ति से चिदानन्द के समूह रूपी सुख-फल को पाया जा सके।
।। इस प्रकार श्रीमद् तपागच्छ के अधिराज श्री सोमसुन्दर सूरि के शिष्य श्री जिनकीर्ति सूरी द्वारा रचित पद्यबन्ध धन्य चारित्रवाले श्री दान कल्प-वृक्ष का महोपाध्याय श्रीधर्मसागर गणि के अन्वय में महोपाध्याय श्री हर्षसागर गणि के प्रपौत्र शिष्य महोपाध्याय श्री ज्ञानसागर गणि के शिष्य ने अल्प मति से ग्रथित गद्य-रचनाप्रबन्ध में सौभाग्यमंजरी-परिणय तथा स्वजन-समागम का वर्णन नामक छट्ठा पल्लव पूर्ण हुआ।।
सातवाँ पल्लव
__एक बार बुद्धि के धाम धन्य के मन में विचार आया-'मेरे भाई पुनः पूर्व की तरह मुझ पर अप्रीति से खिंचाये हुए चित्त को न धारण कर लेवें, इससे पहले शीघ्र ही अन्य इष्ट देश को क्यों नहीं चला जाऊँ? पर इन लोगों के हीन भाग्य के कारण कहीं राजा के दण्ड के पात्र न बन जायें।'
अतः विचार करके उन्हें राजा को संभालने के लिए कह दिया। फिर गजों,