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धन्य-चरित्र/161 बहू को छाछ लाने के लिए राजद्वार पर भेजा। बड़े कार्य के बिना व्यापारी पुरुषों का भी राजद्वार-गमन अयोग्य है, तो स्त्रियों का गमन तो सर्वथा ही अयोग्य है। इतना भी तुम्हें ज्ञात नहीं है। हे बूढ़े बैल! तुमने इतना भी नहीं जाना कि अन्य बहुएँ जाती हैं, तो जल की बहुलतावाली छाछ लाती है और जब यह जाती है, तो दही-दूध, मिष्ठान्न आदि लाती है, तो जरूर इसमें कोई कारण है, क्योंकि इसके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है अथवा कोई पूर्व परिचय भी नहीं है। तो फिर किस कारण इसको भव्य वस्तुएँ देता है, पका हुआ अच्छा फल क्या रक्षक के बिना अखंडित रहता है? धर्मशास्त्रों में भी कहा है-"
मूषकाणां मार्जारदृष्टिवर्जनमिव कुलवतीनां युवापुरुषदृष्टौ गमनागमनं प्रायेण विघ्नकरं भवति।
__ अर्थात् जैसे चूहे, बिल्ली की दृष्टि में आ जाये-वैसा गमनागमन नहीं करते हैं, उसी प्रकार कुलवतियों का युवा पुरुष की दृष्टि में गमनागमन प्रायः अहितकर होता है। अतः युवा पुरुष की दृष्टि का वर्जन करना चाहिए। जैसे रूपवान दुर्बल बच्चे का शाकिनी के आगे खेलना दुःख के लिए ही होता है, वैसे ही रूपवतियों का पुरुष के आगे स्फुरणा करना दुःख के लिए ही है। यह सब तो तुमने नहीं विचारा। उससे बढ़कर अब हमारे आगे क्यों रोते हो? 'साठी बुद्धि नाठी" की लोकोक्ति के अनुसार तुम्हारी बुद्धि साठ की वय में भ्रष्ट हो गयी है। तुम्हारे लिए हम क्यों संकट में पड़ें? जो हमारा कर्त्तव्य था, वह हमने किया। राजा ने ध्यान नहीं दिया, तो हम क्या करें? तुम्हारे कर्मों का ही दोष है। अतः इससे आगे हम कुछ नहीं जानते। जैसी तुम्हारी इच्छा हो, वैसा करो।"
ऐसा कहकर वे सब उठकर अपने-अपने घर चले गये, क्योंकि पर के लिए कौन कष्ट करे? धनसार भी निराश होकर घर की ओर लौटता हुआ सोचने लगा-'अब जो होना है, वह हो जाये। एक बार तो धन्य के पास स्वयं ही जाकर रोऊँगा, हृदय में रही हुई भाप को निकालूँगा। क्या कर लेगा? मुझ पर गुस्सा ही करेगा, तो कर लेवे। मारेगा, तो मार लेवे। अधमरा तो हो ही गया हूँ। ऐसे जीवन से क्या?"
इस प्रकार विचार करके स्वयं जाकर गवाक्ष में स्थित धन्य को जोर से बोला-'हे महाभाग! मेरी बहू को छोड़ो। किस अपराध के लिए मेरी पुत्रवधू रखी है? समर्थ होकर क्यों हम बिचारों को सताते हो?"
इस प्रकार भय को नष्ट करके निःशंक होकर जब अपनी बहू माँगने लगा, तब धन्य ने भ्रू के इशारे में भटों को कहा-'यह क्या माँगता है, वह वस्तु इसे घर के अंदर लाकर दो।"
तब भटों ने कहा-'हे वृद्ध । घर के अंदर चलें। आपकी बहू देते हैं।" इस प्रकार कहकर धनसार को आवास के भीतर ले गये। धन्य ने भी