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धन्य-चरित्र/67 वृद्धों का भी माननीय बन गया है। तेजस्विता ही महत्व का कारण होता है, वृद्धत्व नहीं। क्योंकि
तेजस्विनां हि न वयः समीक्ष्यते।
तेजस्वियों के वय की समीक्षा नहीं की जाती है। तेजस्वी व्यक्ति लघु होते हुए भी प्रशंसनीय होता है, न कि स्थूल। कहा भी गया है
हस्ती स्थूलतनुः स चाऽकुशवशः
किं हस्तिमात्रेऽकुशः? दीप प्रज्वलिते प्रणश्यति तमः,
क: दीपमात्रं तमः? वजेणापि हताः पतन्ति गिरयः,
किं वज्रमात्रो गिरिः? तेजो यस्य विराजते स बलवान,
स्थूलेषु क: प्रत्ययः? स्थूल शरीरवाले हाथी को अंकुश वश में करता है, तो क्या अंकुश हाथी जितना होता है? दीप के प्रज्वलित होने पर तम का नाश होता है, तो क्या अंधकार दीपक-मात्र ही होता है? पर्वत वज्र से भी आहत होकर गिर जाता है, तो क्या पर्वत वज्रमात्र होता है? जिसका तेज शोभित होता है, वही बलवान है, स्थूलता का क्या?
अतः धन्य छोटा होते हुए भी कुलदीप है। इसके ही तीनों अग्रज शरीर आदि से स्थूल होने पर भी अकिचित्कर है। केवल इसके पीछ ही अपने उदर की पूर्ति करते हैं।"
इस प्रकार के पौरजनों के वचनों को सुनकर तीनों ही भाई अत्यधिक ईर्ष्या रूपी अग्नि-पात से सद्बुद्धि रूपी अंकुरों को दग्ध करते हुए क्रूर आशयवाले होकर परस्पर मंत्रणा करने लगे-"ओह! इस धन्य के जीवित रहते क्या हमारी प्रौढ़ता की वृद्धि होगी? नहीं ही होगी। सूर्योदय होने पर किरणों के स्फुरित होने पर क्या तारे स्फुरित क्रांतियुक्त होते हैं? अतः यह अपना अनुज है-इस प्रकार विचार कर उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। अपने अंग से व्याधि की उपेक्षा क्या पीड़ा नहीं करती? इसलिए सहोदर भाव का परित्याग करके इसको विनष्ट करने पर ही हमारे तेज की वृद्धि होगी। दीप भी बाती को जलाकर ही दीप्त होता है, अन्यथा नहीं।"
इस प्रकार परस्पर विचार करके धन्य के विनाश के आर्त्त – ध्यान में लीन हो गये। उनका यह अत्यधिक गुप्त कार्य बुद्धि की प्रगल्भता से तथा कुछ