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धन्य - चरित्र / 68
इंगित आदि विज्ञान के द्वारा धन्य ने जान लिया, क्योंकि पाताल में रहा हुआ भी जल बुध-जनों द्वारा क्या बुद्धि से नहीं जाना जाता ? कहा भी हैआकारैरिङ्गितैर्गत्या चेष्ट्या भाषणेन च ।
भू - नेत्रा - ऽऽस्यविकारेण लक्ष्यतेऽन्तर्गतं मनः । ।
अर्थात् इंगित, आकार, गति, चेष्टा, भाषण, भ्रू, नेत्र तथा मुख के विकार द्वारा अन्दर रहा हुआ मन लक्षित होता ही है । पुनःउदीरितोऽर्थः पशुनाऽपि गृह्यते,
हयाश्च नागाश्च वहन्ति नोदिताः । अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः, परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः ।।
अर्थात् उदीरित अर्थ पशु द्वारा भी ग्रहण किया जाता है। हाथी व घोड़े प्रेरित किये जाने पर ही चलते हैं। पण्डित जन अनुक्त पर भी विचार कर लेते हैं। पर-द्वारा इंगित–ज्ञान - फलवाली ही बुद्धि होती है।
धन्य के गुणों से आकृष्ट चित्तवाली भाभियों ने एकान्त में अपने पतियों का इरादा भक्तिपूर्वक धन्य से कहा - " अतः हे देवर! तुम सावधानी से रहना हमारे स्वामी तो दुर्जन स्वभाववाले होने से असूया - दृष्टि के दोष से सन्मति - मूढ़ हो गये हैं, क्योंकि
सर्पः क्रूरः खलः क्रूरः, सर्पात् क्रूरतरः खलः । मन्त्रेण शाम्यते सर्पः, खलः केन न शाम्यते । ।
अर्थात् सर्प क्रूर होते हैं, दुर्जन क्रूर होते हैं। पर सर्प से क्रूरतर दुर्जन होते हैं। सर्प को तो मंत्र से शमित किया जा सकता हे, पर दुर्जन किसी के द्वारा भी शमित नहीं होता। इसलिए वे विश्वसनीय नहीं होते है । "
इस प्रकार भाभियों द्वारा कहा हुआ सुनकर धन्य ने विचार किया" धिक्कार है उस पुरुष को ! विवेक रूपी तालाब में तत्त्व - अतत्त्व को जानने के गुण द्वारा कलहंस के समान होते हुए भी अपने अनुसंग से कलह को प्रदीप्त करता है, पर कलह - कारण से विराम नहीं लेता । अतः अन्वय-व्यतिरेक से मेरा यहाँ रहना युक्त नहीं है। किसी देशान्तर को चला जाता हूँ, क्योंकि देशान्तर -गमन चतुरता का मूल है। कहा भी है
देशाटने पण्डितमित्रता च, वाराङ्गना राजसभा प्रवेशः I अनेकशास्त्रार्थ विलोकने च चातुर्यमूलानि भवन्ति पञ्च । ।
अर्थात् देशाटन, पण्डित की मित्रता, वेश्या, राजसभा में प्रवेश तथा अनेक शास्त्रार्थों का विलोकन - ये पाँच चातुर्य के मूल हैं।